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________________ एकोनविंशतिस्थानक समवाय] [59 एकोनविंशतिस्थानक-समवाय १३३---एगूणवीसं णायज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा 'उक्खितणाए, 'संधाडे, अंडे, 'कुम्भे अ, 'सेलए। तुबे, अ, 'रोहिणी, मल्ली, 'मागंदी, चंदिमाति अ॥१॥ १'दावद्दवे, ''उदगणाए, १३मंडुक्के, "तेतली इ अ। १५नंदिफले, अवरकंका, आइण्णे, १सुसुमा इअ॥२॥ अवरे अ, "पोण्डरोए णाए एगूणवीसइमे / ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के (प्रथम श्रुतस्कन्ध के) उन्नीस अध्ययन कहे गये हैं। जैसे—१. उत्क्षिप्तज्ञात. 2. संघाट, 3. अंड, 4. कर्म, 5. शैलक, 6. तुम्ब, 7. रोहिणी, 8. मल्ली , 9. माकंदी, 1. दावद्रव, 12. उदकज्ञात, 13. मंडक, 14. तेतली, 15. नन्दिफल, 16. अपरकंका, 17. पाकीर्ण, 18. सुसुमा और पुण्डरीकज्ञात // 1-2 / / १३४--जंबूदीवे णं दीवे सूरिआ उक्कोसेणं एगूणवीसं जोयणसयाइं उडमहो तवयंति / जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में सूर्य उत्कृष्ट रूप से एक हजार नौ सौ योजन ऊपर और नीचे तपते हैं। विवेचन--रत्नप्रभा पृथिवी के उपरिम भूमिभाग से ऊपर आठ सौ योजन पर सूर्य अवस्थित है और उक्त भूमिभाग से एक हजार योजन गहरा लवणसमुद्र है। इसलिए सूर्य अपने उष्ण प्रकाश से पर सो योजन तक—जहां तक कि ज्योतिश्चक्र अवस्थित है, तथा नीचे अठारह सौ योजन अर्थात् लवणसमुद्र के अधस्तन तल तक इस प्रकार सर्व मिलाकर उन्नीस सौ (1900) योजन के क्षेत्र को संतप्त करता है। 135 ---सुक्के णं महग्गहे अवरेणं उदिए समाणे एगूणवीसं णक्खत्ताई समं चारं चरिता प्रवरेणं अत्थमणं उवागच्छइ / शुक्र महाग्रह पश्चिम दिशा से उदित होकर उन्नीस नक्षत्रों के साथ सहगमन करता हुआ पश्चिम दिशा में अस्तंगत होता है। १३६.---जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स कलानो एगूणवीसं छेप्रणाम्रो पण्णतायो। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप को कलाएं उन्नीस छेदनक (भागरूप) कही गई हैं। विवेचन-जम्बूद्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। उसके भीतर जो छः वर्षधर पर्वत और सात क्षेत्र हैं, वे भारतवर्ष से मेरु पर्वत तक दूने-दूने विस्तार वाले हैं और मेरु से आगे ऐरवत वर्ष तक आधे-आधे विस्तार वाले हैं। इन सबका योग (1+2+4+8+16+32+64+32+ 16+6+4+2+1= 190) एक सौ नव्वे होता है / इस (190) का भाग एक लाख में देने पर 5266, प्राता है / ऊपर के शून्य का नीचे के शून्य के साथ अपवर्तन कर देने पर रह जाता है। प्रकृत सूत्र में इसी उन्नीस भागरूप कलाओं का उल्लेख किया गया है, क्योंकि 190 भागों में जिस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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