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________________ 58] [समवायाङ्गसूत्र विवेचन–पौष मास में सबसे बड़ी रात अठारह मुहूर्त की होती है और आषाढ़ मास में सबसे बड़ा दिन अठारह मुहूर्त का होता है, यह सामान्य कथन है / हिन्दू ज्योतिष गणित के अनुसार आषाढ़ में कर्क संक्रान्ति को सबसे बड़ा दिन और मकर संक्रान्ति के दिन पौष में सबसे बड़ी रात होती है / अंग्रेजी ज्योतिष के अनुसार 23 दिसम्बर को सबसे बड़ी रात और 21 जून को सबसे बड़ा दिन अठारह मुहूर्त का होता है / एक मुहूर्त में 48 मिनिट होते हैं / १३१-इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठारस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठारस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता / सोहम्मोसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं अट्ठारस पिलओवमाई ठिई पण्णत्ता। सहस्सारे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाई ठिई पग्णत्ता। इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितने क नारकों को उत्कृष्ट स्थिति अठारह पल्योपम कही कई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति अठारह पल्योपम कही गई है / सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति अठारह पल्योपम कही गई है। सहस्रार कल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति अठारह सागरोपम कही गई है। १३२-आणए कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं जहण्णेणं अद्वारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। जे देवा कालं सुकालं महाकालं अंजणं रिठे सालं समाणं दुमं महादुमं विसालं सुसालं पउमं पउमगुम्म कुमुदं कुमुदगुम्म नलिणं नलिणगुम्मं पुडरीअं पुंडरीयगुम्मं सहस्सारडिसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णता। ते णं देवाणं अट्ठारसहिं अद्धमासेहि प्राणमंति वा, पाणमंति वा, ऊससंति वा, नीससंति वा / तेसि णं देवाणं अट्ठारस वाससहस्सेहि आहारट्ठे समुप्पज्जइ / संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे अट्ठारसहि भवग्गणेहि सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति / / आनत कल्प में कितनेक देवों को जघन्य स्थिति अठारह सागरोपम कही गई है। वहां जो देव काल, सुकाल, महाकाल, अंजन, रिष्ट, साल, समान, द्रुम, महाद्रुम, विशाल, सुशाल, पद्म, पद्मगुल्म, कुमुद, कुमुदगुल्म, नलिन, नलिनगुल्म, पुण्डरीक, पुण्डरीकगुल्म और सहस्रारावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की स्थिति अठारह सागरोपम कही गई है। वे देव अठारह अर्धमासों (नौ मासों) के बाद प्रान-प्राण या उच्छ्वास-नि:श्वास लेते हैं / उन देवों के अठारह हजार वर्ष के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। __कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो अठारह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। ॥अष्टादशस्थानक समवाय समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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