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________________ [समवायाङ्गसूत्र कसाए माया अपच्चक्खाणकसाए लोभे, पच्चक्खाणावरणे कोहे, पच्चक्खाणावरणे माणे, पच्चक्खाणावरणा माया, पच्चक्खाणावरणे लोभे; संजलणे कोहे, संजलणे माणे, संजलणा माया, संजलणे लोभे। कषाय सोलह कहे गये हैं। जैसे—अनन्तानुबन्धी क्रोध, अनन्तानुबन्धी मान, अनन्तानुबन्धी माया, अनन्तानुबन्धी लोभ ; अप्रत्याख्यानकषाय क्रोध, अप्रत्याख्यानकषाय मान, अप्रत्याख्यानकषाय माया, अप्रत्याख्यानकषाय लोभ ; प्रत्याख्यानावरण क्रोध प्रत्याख्यानावरण मान, प्रत्याख्यानावरण माया, प्रत्याख्यानावरण लोभ; संज्वलन मान, संज्वलन माया और संज्वलन लोभ / ११२---मंदरस्स णं पव्वयस्स सोलस नामधेया पण्णत्ता, तं जहा मंदर' मेरु' मणोरण सुदंसण सयंपभेय गिरिराया। रयणुच्चय' पियदसण मज्झे लोगस्स: नाभीय // 1 // प्रत्थे'अ सूरिसावत्ते'२ सूरिआ 3 वरण ति अ / उत्तरे'४ अ दिसाई अ५ डिसे'६ इअ सोलसे // 2 // मन्दर पर्वत के सोलह नाम कहे गये हैं / जैसे 1 मन्दर, 2 मेरु, 3 मनोरम, 4 सुदर्शन, 5 स्वयम्प्रभ, 6 गिरिराज, 7 रत्नोच्चय, 8 प्रियदर्शन, 9 लोकमध्य, 10 लोकनाभि, 11 अर्थ, 12 सूर्यावर्त, 13 सूर्यावरण, 14 उत्तर, 15 दिशादि और 16 अवतंस / / 1-2 / / ११३-पासस्स णं अरहतो पुरिसादाणीयस्स सोलस समणसाहस्सीमो उक्कोसिआ समणसंपदा होत्था / आयप्पवायस्स णं पुध्वस सोलस वत्थू पण्णत्ता। चमरबलोणं ओवारियालेणे सोलस जोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणं पण्णते। लवणे णं समुद्दे सोलस जोयणसहस्साई उस्सेहपरिवुड्डीए पण्णत्ते। पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् की उत्कृष्ट श्रमण-सम्पदा सोलह हजार श्रमणों की थी। प्रात्मप्रवाद पूर्व के वस्तु नामक सोलह अर्थाधिकार कहे गये हैं। चमरचंचा और बलीचंचा नामक राजधानियो के मध्य भाग में उतार-चढ़ाव रूप अवतारिकालयन वत्ताकार वाले होने से सोलह हजार आयाम-विष्कम्भ वाले कहे गये है। लवणसमुद्र के मध्य भाग में जल के उत्सेध की वृद्धि सोलह हजार योजन कही गई है। ११४--इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सोलस पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता। पंचमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सोलस सागरोवमा ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं अत्थेगइमाणं सोलस पलिओवमाई ठिई पण्णता। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं सोलस पलिग्रोवमाइंठिई पण्णत्ता। इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकों की स्थिति सोलह पल्योपम कही गई है। पाँचवीं धूमप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकियों की स्थिति सोलह सागरोपम की कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति सोलह पल्योपम कही गई है। सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति सोलह पल्योपम कही गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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