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________________ सप्तदशस्थानक समवाय] ११५.-महासुक्के कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं सोलस सागरोवमाई ठिई पण्णता। जे देवा आवत्तं विप्रावत्तं नंदिआवत्तं महाणंदिआवत्तं अंकुसं अंकुसपलंबं भदं सुभदं महाभद्दे सव्वओभई भद्दुत्तरडिसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं सोलस सागरोवमाई ठिई पण्णता / ते णं देवा सोलसण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा, उस्ससंति वा, नीससंति वा / तेसि णं देवाणं सोलसवाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ। ___ संतेगइआ भवसिद्धिआ जीवा जे सोलसहि भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति / महाशूक्र कल्प में कितनेक देवों की स्थिति सोलह सागरोपम कही गई है। वहां जो देव आवर्त, व्यावर्त, नन्द्यावर्त, महानन्द्यावर्त, अंकुश, अंकुशप्रलम्ब, भद्र, सुभद्र, महाभद्र, सर्वतोभद्र और भद्रोत्तरावतंसक नाम के विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति सोलह सागरोपम कही गई है / वे देव सोलह अर्धमासों (आठ मासों) के बाद प्रान-प्राण या उच्छ्वासनिःश्वास लेते हैं। उन देवों को सोलह हजार वर्षों के बाद पाहार की इच्छा उत्पन्न होती है / कितनेक भव्य सिद्धिक जीव ऐसे हैं जो सोलह भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दु:खों का अन्त करेंगे / // षोडशस्थानक समवाय समाप्त // सप्तदशस्थानक-समवाय ११६-सत्तरसविहे असंजमे पण्णत्ते, तं जहा-पुढविकायअसंजमे आउकायअसंजमे तेउकायअसंजमे बाउकायअसंजमे वणस्सइकायप्रसंजमे बेइंदियअसंजमे तेइंदियअसंजमे चारदियघसंजमे पंचिदिअअसंजमे अजीवकाय प्रसंजमे पेहाप्रसंजमे उबेहाअसंजमे अवहट्टुअसंजमे अप्पमज्जणाअसंजमे मणअसंजमे व इअसंजमे काय प्रसंजमे / सत्तरह प्रकार का असंयम कहा गया है। जैसे-१. पृथिवीकाय-असंयम, 2. अप्काय-असंयम, 3. तेजस्काय-असंयम, 4. वायुकाय-प्रसंयम, 5. वनस्पतिकाय-असंयम, 6. द्वीन्द्रिय-असंयम, 7. त्रीन्द्रिय-असंयम, 8. चतुरिन्द्रिय-असंयम, 9. पंचेन्द्रिय-असंयम, 10, अजीवकाय-असंयम, 11. प्रेक्षाअसंयम, 12. उपेक्षा-प्रसंयम, 13. अपहृत्य-असंयम, 14. अप्रमार्जना-प्रसंयम, 15. मनः-असंयम, 16. वचन-असंयम, 17. काय-असंयम / 117-- सत्तरसविहे संजमे पण्णत्ते, तं जहा--पुढविकायसंजमे आउकायसंजमे तेउकायसंजमे वाउकायसंजमे वगस्सइकायसंजमे बेइंदियसंजमे तेइंदियसंजमे चउरिदियसंजमे पंचिदियसंजमे अजीवकायसंजमे पेहासंजमे उवेहासंजमे अवहटुसंजमे पमज्जणासंजमे मणसंजमे वइसंजमे कायसंजमे / सत्तरह प्रकार का संयम कहा गया है / जैसे-१. पृथिवीकाय-संयम, 2. अप्काय-संयम, ३.तेजस्काय-संयम, 4. वायकाय-संयम, 5. वनस्पतिकाय-संयम, ६.द्वीन्द्रिय-संयम, 7. श्रीन्द्रिय-संयम न्द्रिय-संयम, 9. पंचेन्द्रिय-संयम, 10. अजीवकाय-संयम, 11. प्रेक्षा-संयम, 12. उपेक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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