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________________ चतुर्दशस्थानक समवाय] [43 यहां यह विशेष ज्ञातव्य है कि पाचवें से ऊपर के सभी गुणस्थान केवल मनुष्यों के ही होते हैं और सातवें से ऊपर के सभी गुणस्थान उत्तम संहनन के धारक तद्भव मोक्षगामी को होते हैं / हां, ग्यारहवें गुणस्थान तक निकट भव्य पुरुष भी चढ़ सकता है। किन्तु उसका नियम से पतन होता है और अपार्ध पुद्गल परावर्तन काल तक वह संसार में परिभ्रमण कर सकता है। सातवें गुणस्थान से ऊपर दो श्रेणी होती हैं-उपशम श्रेणी और क्षपक श्रेणी / जो जीव चारित्रमोहकर्म का उपशम करता है, वह उपशम श्रेणी चढ़ता है। जो जीव चारित्रमोहकर्म का क्षय करने के लिए उद्यत होता है, वह क्षपक श्रेणी चढ़ता है। दोनों श्रेणी वाले गुणस्थानों का काल अन्तर्मुहूर्त है। ___8. निवृत्तिबादर उपशामक क्षपक गुणस्थान-अनन्तानुबन्धी कषायचतुष्क और दर्शनमोहत्रिक इन सात प्रकृतियों का उपशमन करने वाला जीव इस आठवें गुणस्थान में प्राकर अपनी अपूर्व विशुद्धि के द्वारा चारित्रमोह की शेष रही 21 प्रकृतियों के उपशमन की, तथा उक्त सात प्रकृतियों का क्षय करने वाला क्षायिक सम्यग्दष्टि जीव उक्त प्रकृतियों के क्षपण की आवश्यक तैयारी करता है / अतः इस गुणस्थानवाले सम समयवर्ती जीवों के परिणामों में भिन्नता रहती है और बादर संज्वलन कषायों का उदय रहता है, अतः इसे निवृत्तिबादर गुणस्थान कहते हैं। 9. अनिवृत्तिबादर उपशामक-क्षपक गुणस्थान–इस गुणस्थान में आने वाले एक समयवर्ती सभी जीवों के परिणाम एक से होते हैं, उनमें निवृत्ति या भिन्नता नहीं होती, अतः इसे अनिवृत्तिबादर गुणस्थान कहा गया है। इस गुणस्थान में उपशम श्रेणीवाला जीव सूक्ष्म लोभ को छोड़कर शेष सभी चारित्रमोह प्रकृतियों का उपशम और क्षपक श्रेणीवाला जीव उन सभी का क्षय कर डालता है और दशवें गुणस्थान में पहुंचता है। 10. सूक्ष्मसाम्पराय उपशामक-क्षपक गुणस्थान--इस गुणस्थान में पाने वाले दोनों श्रेणियों के जीव सूक्ष्मलोभकषाय का वेदन करते हैं, अतः इसे सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान कहते हैं। सम्पराय नाम कषाय का है / उपशम श्रेणीवाला जीव उस सूक्ष्मलोभ का उपशम करके ग्यारहवें गुणस्थान में पहुंचता है और क्षपक श्रेणी वाला उसका क्षय करके बारहवें गुणस्थान में पहुंचता है। दोनों श्रेणियों के इसी भेद को बतलाने के लिए इस गुणस्थान का नाम 'सूक्ष्मसाम्पराय उपशामक-क्षपक' दिया गया है। 11. उपशान्तमोह गुणस्थान--उपशम श्रेणीवाला जीव दश गुणस्थान के अन्तिम समय में सूक्ष्म लोभ का उपशमन कर इस गुणस्थान में आता है और मोह कर्म की सभी प्रकृतियों का पूर्ण उपशम कर देने से यह उपशान्तमोह गुणस्थान वाला कहा जाता है। इस गुणस्थान का काल लधु अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। इसके समाप्त होते ही वह नीचे गिरता हुप्रा सातवें गुणस्थान को प्राप्त होता है। यदि उसका संसार-परिभ्रमण शेष है, तो वह मिथ्यात्व गुणस्थान तक भी प्राप्त हो जाता है। 12. क्षीणमोह गुणस्थान-क्षपक श्रेणी पर चढ़ा हुअा दशवें गुणस्थानवर्ती जीव उसके अन्तिम समय सूक्ष्म लोभ का भी क्षय करके क्षीणमोही होकर बारहवें गुणस्थान में पहुंचता है। यतः उसका मोहनीयकर्म सर्वथा क्षीण या नष्ट हो चुका है, अतः यह गुणस्थान 'क्षीणमोह' इस सार्थक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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