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________________ 18] [समवायाङ्गसूत्र स्थिति छह सागरोपम कही गई है। वे देव छह अर्धमासों (तीन मासों) के बाद प्रान-प्राण या उच्छ्वास-नि:श्वास लेते हैं। उन देवों के छह हजार वर्षों के बाद अाहार की इच्छा उत्पन्न होती है। कितनेक भव्य सिद्धिक जीव ऐसे हैं जो छह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे / ॥षस्थानक समवाय समाप्त / / सप्तस्थानक-समवाय ३७-सत्त भयदाणा पण्णत्ता, तं जहा-इहलोगभए परलोगभए आदाणभए अकम्हाभए प्राजीवभए मरणभए असिलोगभए / सत्त समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा---वेयणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्धाए वेउब्वियसमुग्घाए तेयसमुग्घाए आहारसमुग्घाए केवलिसमुग्घाए / सात भयस्थान कहे गये हैं। जैसे—इहलोकभय, परलोकभय, प्रादानभय, अकस्मात् भय, आजीवभय, मरणभय और अश्लोकभय / सात समुद्घात कहे गये हैं, जैसे-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिक-समुद्धात वैक्रियसमुद्घात, आहारकसमुद्घात और केव लिसमुद्घात / विवेचन—सजातीय जीवों से होने वाले भय को इहलोकभय कहते हैं, जैसे--मनुष्य को मनुष्य से होने वाला भय / विजातीय जीवों से होने वाले भय को परलोकभय कहते हैं। जैसेमनुष्य को पशु से होने वाला भय / उपाजित धन की सुरक्षा का भय आदानभय कहलाता है / बिना किसी बाह्य निमित्त के अपने ही मानसिक विकल्प से होने वाले भय को अकस्मात्भय कहते हैं। जीविका सम्बन्धी भय को आजीवभय कहते हैं / मरण के भय को मरणभय कहते हैं अश्लोक का अर्थ है-निन्दा या अपकीत्ति / निन्दा या अपकीत्ति के भय को अश्लोकभय कहते हैं / समुद्घात के छह भेदों का स्वरूप पहले कह पाये हैं / केवलीभगवान् के वेदनीय, नाम और गोत्रकर्म की स्थिति को आयुकर्म की शेष रही अन्तर्मुहूर्त प्रमाणस्थिति के बराबर करने के लिए जो दंड, कपाट, मन्थान और लोकपूरण रूप आत्म-प्रदेशों का विस्तार होता है, उसे केवलिसमुद्घात कहते हैं / ३८-समणे भगवं महाबीरे सत्त रयणीयो उड्ढं उच्चत्तेण होत्था। श्रमण भगवान् महावीर सात रत्नि-हाथ प्रमाण शरीर से ऊंचे थे। ३९–इहेव जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासहरपव्वया पण्णता, तं जहा-चुल्लहिमवंते महाहिमवंते निसढे नीलवंते रुप्पी सिहरी मन्दरे / इहेव जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासा पण्णता, तं जहा - भरहे हेमवते हरिवासे महाविदेहे रम्मए एरण्णवए एरवए / इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सात वर्षधर पर्वत कहे गये हैं। जैसे—क्षुल्लक हिमवंत, महाहिमवंत, निषध, नोलवंत, रुक्मी, शिखरी और मन्दर (सुमेरु पर्वत)। इस जंबूद्वीप नामक द्वीप में सात क्षेत्र कहे गये हैं। जैसे---भरत, हैमवत, हरिवर्ष, महाविदेह, रम्यक, ऐरण्यवत और ऐरवत / ४०-खोणमोहेणं भगवया मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्पपगडीओ वेए (ज्ज) ई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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