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________________ नवासीवें समवाय का पहला सूत्र---'उसभे परहा........' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति५८३ में भी अरहंत कौसलिक ऋषभदेव इस अवसपिणो के तृतीय सुषम-दुषमा काल के अन्तिम भाग में नवासी पक्ष शेष रहने पर कालधर्म को प्राप्त हुए। नब्बेवें समवाय का पांचवां सत्र-'सव्वेसि णं वट्टवेयड्ढपव्वयाणं........' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति८४ में भी सर्ववत्तवैताढ्य पर्वतों के शिखर के ऊपर से सौगंधिक काण्ड के नीचे के चरमान्त का अव्यवहित अन्तर नब्बे सौ योजन कहा है। छियानवेवें समवाय का पहला सूत्र--'एगमेगस्स गं रन्नो चाउरत-चक्कवट्टिस्स... ....' है तो जम्बूद्वीप९८५ प्रज्ञप्ति में भी प्रत्येक चक्रवर्ती के छानवे-छानवे करोड़ ग्राम बताये हैं। निन्यानवेवें समवाय के पहले सूत्र से लेकर छ8 सूत्र तक जो वर्णन है वह जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 86 में भी ज्यों का त्यों मिलता है। सौवें समवाय का छठा सत्र---'सब्वेवि णं दीहवेयड्ढपब्वया"......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति८७ में सर्व दीर्घवंताढय पर्वत सौ-सौ कोश ऊँचे प्ररूपित हैं। दो सौवें समवाय का तीसरा सूत्र-'जंबुद्दीवे णं दीवे दो कंचणपब्वय-सया पणत्ता.......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 668 में भी जम्बूद्वीप में दो सौ कांचनक पर्वतों का वर्णन है। पांच सौवें समवाय में प्रथम सूत्र से लेकर सातवें सूत्र तक जो वर्णन है वह जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भी इसी तरह मिलता है। हजारवें समवाय में दूसरे सत्र से लेकर छठे सत्र तक जो वर्णन है, वह जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भी इसी तरह देखा जा सकता है। इस तरह समवायांग और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में अनेक स्थलों पर विषयसाम्य है। विस्तारभय से कूछ सत्रों की तुलना जानकर हमने यहाँ पर छोड़ दी है / समवायांग और सूर्यप्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्ति छठा उपांग है / डॉ. विन्टर नित्ज ने सूर्यप्रज्ञति को एक वैज्ञानिक ग्रन्थ माना है। डॉ. शुकिंग ने जर्मनी की हेम्बर्ग यूनिवसिटी में अपने भाषण में कहा था कि 'जंन विचारकों ने जिन तर्कसम्मत एवं सुसंगत सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया है वे आधुनिक विज्ञानवेत्ताओं की दृष्टि से भी अमूल्य एवं महत्त्वपूर्ण 683. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 2, सूत्र 31, 33 684. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 4, सूत्र 82 685. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 3, सूत्र 67 686. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 4, 7, सूत्र 103, 134 657. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति--वक्ष 1, सत्र 12 688. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 6, सूत्र 125 689. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 4, 3 सूत्र 125, 33, 70, 86, 91, 97, 75 690. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 4, सूत्र 88, 72 [ 100 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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