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________________ में भी भरत चक्रवर्ती सतहत्तर लाख पूर्व तक कुमार पद में रहने के पश्चात् राजपद को प्राप्त हुए, यह उल्लेख है। अठहत्तरबें समवाय का तीसरा सूत्र-'उत्तरायणनियट्रे णं सूरिए.......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 74 में उत्तरायण से लौटता हुप्रा सूर्य प्रथम मंडल से उनचालीसवें मंडल तक एक मुहर्त के इकस ठिए अठहत्तर भाग प्रमाण दिन तथा रात्रि को बढाकर गति करता कहा है। उन्नीसवें समवाय का चतुर्थ सूत्र-'जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति६७५ में भी वर्णन है कि जम्बूद्वीप के प्रत्येक द्वार का अव्यवहित अन्तर उन्नासी हजार योजन का है। बियामी समवाय का पहला सूत्र- 'जंबुद्दीवे दीवे बासीयं.......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति७६ में कहा है--जम्बूद्वीप में एक सौ बियासीवें सर्यमण्डल में सर्य दो बार गति करता है। तियासीवें समवाय का चौथा सूत्र--'उसभे णं अरहा कोसलिए.......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 77 में भी लिखा है अरहंत कौमलिक ऋषभदेव तियासी लाख पूर्व गृहवास में रहकर मुडित यावत् प्रवजित हुए। तियासीवें समवाय का पांचवां सत्र--'भरहे णं राया चाउरतचक्कवठी........' है तो जम्बूद्वीप६७८ प्रज्ञप्ति में भी वर्णन है कि भरत चक्रवर्ती तियासी लाख पूर्व गृहवास में रहकर जिन हुए। चौरासीवें समवाय का दूसरा सत्र-'उसभे णं अरहा कोसलिए"......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति७६ के अनुसार भी परहंत कोसलिक ऋषभदेव चौरासी लाख पूर्व का आयु पूर्ण करके सिद्ध यावत् सर्व दु:खों से मुक्त हुए। चौरासीवेंसमवाय का तीसरा सत्र 'सिज्जसे गं अरहा चउरासीई........' है तो जम्बदीप में भी उल्लेख है कि ऋषभदेव जी भी तरह भरत बाहुबली ब्राह्मी और सुन्दरी भी सिद्ध हुए / चौरासीवें समवाय का पन्द्रहवांसूत्र—उसभस्स ण अरहो......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति६८१ में अरहंत ऋषभदेव के चौरासी गण और चौरासी गणधरों का उल्लेख है। अठासीवें समवाय का तीसरा सूत्र...'मंदरस्स णं पब्वयस्स.......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति६८३ में भी मेरु पर्वत के पूर्वी चरमान्त से गोस्तूप आवास पर्वत के पूर्वी चरमान्त का अव्यवहित अन्तर अठासी हजार योजन का बताया है। 674. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 7, सूत्र 131 675. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 1, सूत्र 9 676. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 7, सूत्र 134 677. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 2, सूत्र 30, 31 678. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 3, सूत्र 70 679. जम्बूदीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 2, सूत्र 33 680. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 2, सूत्र 33 681. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 2, सूत्र 18 682. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष 4, सूत्र 103 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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