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________________ द्वितीय स्थान---सारःसंक्षेप ] [23 तत्पश्चात् कर्मपद के द्वारा दो प्रकार के बंध, दो स्थानों से पापकर्म का बंध, दो प्रकार की वेदना से पापकर्म की उदीरणा, दो प्रकार से वेदना का वेदन, और दो प्रकार से कर्म-निर्जरा का वर्णन किया गया है। तदनन्तर आत्म-निर्याणपद के द्वारा दो प्रकार से प्रात्म-प्रदेशों का शरीर को स्पर्शकर, स्फुरणकर, स्फोटकर संवर्तनकर, और निर्वर्तनकर बाहिर निकलने का वर्णन किया गया है / पुनः क्षयोपशम पद के द्वारा केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण, बोधि का अनुभव, अनगारिता, ब्रह्मचर्यावास, संयम से संयतता, संवर से संवतता और मतिज्ञानादि की प्राप्ति कर्मों के क्षय और उपशम से होने का वर्णन किया गया है। पुनः प्रौपमिक काल पद के द्वारा पल्योपम, सागरोपमकाल का, पाप पद के द्वारा क्रोध, मानादि पापों के आत्मप्रतिष्ठित और परप्रतिष्ठित होने का वर्णन कर जीवपद के द्वारा जीवों के त्रस-स्थावर प्रादि दो दो भेदों का निरूपण किया गया है / तत्पश्चात् मरणपद के द्वारा भ. महावीर से अनुज्ञात और अननुज्ञात दो दो प्रकार के मरणों का वर्णन किया गया है। पुन: लोकपद के द्वारा भगवान से पूछे गये लोक-सम्बन्धी पश्नों का उत्तर, बोधिपद के द्वारा बोधि और बुद्ध, मोहपद के द्वारा मोह और मूढ़ जनों का वर्णन कर कर्मपद के द्वारा ज्ञानावरणादि पाठों कर्मों की द्विरूपता का निरूपण किया गया है / ___ तदनन्तर मूर्छापद के द्वारा दो प्रकार की मूर्छाओं का, आराधनापद के द्वारा दो दो प्रकार को आराधनाओं का और तीर्थकर-वर्णपद के द्वारा दो दो तीर्थंकरों के नामों का निर्देश किया गया है। पुनः सत्यप्रवादपूर्व की दो वस्तु नामक अधिकारों का निर्देश कर दो दो तारा वाले नक्षत्रों का, मनुष्यक्षेत्र-गत दो समुद्रों का और नरक गये दो चक्रत्तियों के नामों का निर्देश किया गया है। तत्पश्चात् देवपद के द्वारा देवों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का, दो कल्पों में देवियों की उत्पत्ति का, दो कल्पों में तेजोलेश्या का और दो दो कल्पों में क्रमश: कायप्रवीचार, स्पर्श, रूप, शब्द और मन:प्रवीचार का वर्णन किया गया है। अन्त में पापकर्मपद के द्वारा त्रस और स्थावर-कायरूप से कमों का संचय निरूपण कर पुद्गलपद के द्विप्रदेशी, द्विप्रदेशावगाढ, द्विसमयस्थितिक तथा दो-दो रूप, रस, गन्ध, स्पर्श गुणयुक्त पुद्गलों का वर्णन किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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