________________ 744 ] [ स्थानांगसूत्र 6. अप्रथम समय-त्रीन्द्रिय निर्वतित पुद्गलों का / 7. प्रथम समय-चतुरिन्द्रिय निर्वतित पुद्गलों का / 8. अप्रथम समय-चतुरिन्द्रिय निर्वतित पुद्गलों का। 6. प्रथम समय-पंचेन्द्रिय निर्वतित पुद्गलों का। 10. अप्रथम समय-पंचेन्द्रिय निर्वतित पुद्गलों का / इसी प्रकार उनका चय, उपचय, बन्धन, उदीरण, वेदन और निर्जरण किया है, करते हैं और करेंगे (173) / पुद्गल-सूत्र १७४–दसपएसिया खंधा प्रणंता पण्णत्ता। दश प्रदेशी पुद्गलस्कन्ध अनन्त कहे गये हैं (174) / १७५--दसपएसोगाढा पोगाला अणंता पण्णता। दश प्रदेशावगाढ पुद्गल अनन्त कहे गये हैं (175) / १७६-दससमयठितीया पोग्गला अणंता पण्णत्ता / दश समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं (176) / १७७-दसगुणकालगा पोग्गला प्रणता पण्णत्ता। दश गुण काले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं (177) / १७८–एवं वर्णाहं गंधहि रसेहिं फासेहिं दसगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। इसी प्रकार शेष वर्ण तथा गन्ध, रस और स्पर्शों के दश-दश गुण वाले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं (178) / // दशम स्थानक समाप्त / / // स्थानांग समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org