________________ दशम स्थान] [743 १६६-अणुराधाणक्खत्ते सव्वम्भंत राम्रो मंडलामो दसमे मंडले चारं चरति / अनुराधा नक्षत्र चन्द्रमा के सर्वाभ्यन्तर-मण्डल से दशवें मण्डल में संचार करता है (166) / जानवृद्धिकर-सूत्र १७०---दस णक्खत्ता णाणस्स विद्धिकरा पण्णत्ता, त जहा-- संग्रहणी-गाथा मिगसिरमद्दा पुस्सो, तिण्णि य पुवाई मूलमस्सेसा / हत्थो चित्ता य तहा, दस विद्धिकराइं णाणस्स // 1 // दश नक्षत्र ज्ञान की वृद्धि करने वाले कहे गये हैं। जैसे१. मृगशिरा, 2. प्रार्द्रा, 3. पुष्य, 4. पूर्वाषाढा, 5. पूर्वभाद्रपद, 6. पूर्व फाल्गुनी, 7, भूल, 8. आश्लेषा, 6. हस्त, 10. चित्रा। ये दश नक्षत्र ज्ञान की वृद्धि करते हैं (170) / कुलकोटि-सूत्र १७१-चउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं दस जाति-कुलकोडि-जोणिपमुह-सतसहस्सा पण्णत्ता। पंचेन्द्रिय, तिर्यग्योनिक, स्थलचर चतुष्पद की जाति-कुल-कोटियां दश लाख कही गई हैं (171) / १७२-उरपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं दस जाति-कुलकोडि-जोणिपमुह-सतसहस्सा पण्णत्ता। पंचेन्द्रिय, तिर्यग्योनिक स्थलचर उरःपरिसर्प की जाति-कुलकोटियां दश लाख कही गई हैं (172) / पापकर्म-सूत्र १७३-जीवा गं दसठाणणिवत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिति वा चिणिस्संति वा, त जहा--पढमसमयएगिदियणिवत्तिए, (अपढमसमयएगिदियणिवत्तिए, पढमसमयबेइंदियणिन्वत्तिए, अपढमसमयबेइंदिर्याणवत्तिए, पढ़मसमयबेइंदियणिवत्तिए, अपढमसमयतेइंदियणिव्यत्तिए, पढमसमयचरिदियणिवत्तिए. अपढमसमयचरिदियणिवत्तिए, पढमसमयपंचिदियणिव्वत्तिए, अपढमसमय)पंचिदियणिवत्तिए। एवं-चिण-उवचिण-बंध-उदोर-वेय तह णिज्जरा चेव / जीवों ने दश स्थानों से निर्वतित पुद्गलों का पापकर्म के रूप से संचय किया है, करते हैं और करेंगे। जैसे 1. प्रथम समय--एकेन्द्रिय नितित पुद्गलों का। 2. अप्रथम समय-एकेन्द्रिय निर्वतित पुद्गलों का / 3. प्रथम समय-द्वीन्द्रिय निर्वतित पुद्गलों का / 4. अप्रथम समय-द्वीन्द्रिय निर्वतित पुद्गलों का। 5. प्रथम समय--त्रीन्द्रिय निर्वतित पुद्गलों का। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org