________________ दशम स्थान ] [ 717 दोष-सूत्र १४-दसविहे दोसे पणते, तं जहा तज्जातदोसे मतिभंगदोसे, पसत्थारदोसे परिहरणदोसे / सलक्खण-कारण-हेउदोसे, संकामणं णिग्गह-वत्थुदोसे / / 1 / / दोष दश प्रकार के कहे गये हैं। जैसे --- 1. तज्जात-दोष-वादकाल में प्रतिवादी से क्षुब्ध होकर चुप रह जाना / 2. मतिभंग-दोष--तत्त्व को भूल जाना / 3. प्रशास्तृ-दोष-सभ्य या सभाध्यक्ष की ओर से होने वाला दोष, पक्षपात आदि / 4. परिहरण दोष-वादी के द्वारा दिये गये दोष का छल या जाति से परिहार करना। 5. स्वलक्षण-दोष-वस्तु के निर्दिष्ट लक्षण में अव्याप्ति, अतिव्याप्ति या असंभव दोष का होना। 6. कारण-दोष-कारण-सामग्री के एक अंश को कारण मान लेना, या पूर्ववर्ती होने मात्र से कारण मानना / 7. हेतु-दोष हेतु का प्रसिद्धता, विरुद्धता आदि दोष से दोषयुक्त होना / 8. संक्रमण-दोष-प्रस्तुत प्रमेय को छोड़कर अप्रस्तुत प्रमेय की चर्चा करना / 6. निग्रह-दोष-छल, जाति, वितण्डा आदि के द्वारा प्रतिवादी को निगृहीत करना / 10. वस्तुदोष-पक्ष सम्बन्धी प्रत्यक्षनिराकृत, अनुमाननिराकृत आदि दोषों में से कोई दोष होना (64) / विशेष-सूत्र ६५-दसविधे विसेसे पण्णते, तं जहा वत्थु तज्जातदोसे य, दोसे एगट्ठिएति य / कारणे य पडुप्पण्णे, दोसे णिच्चेहिय अटुमे / / प्रत्तणा उवणीते य, विसेसेति य ते दस // 1 // विशेष दश प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. वस्तुदोष-विशेष—पक्ष-सम्बन्धी दोष के विशेष प्रकार / 2. तज्जात-दोष-विशेष-वादकाल में प्रतिवादी के जन्म आदि सम्बन्धी विशेष दोष / 3. दोष-विशेष—अतिभंग प्रादि दोषों के विशेष प्रकार / 4. एकाथिक-विशेष-एक अर्थ के वाचक शब्दों की निरुक्ति-जनित विशेष प्रकार। 5. कारण-विशेष-कारण के विशेष प्रकार / 6. प्रत्युत्पन्न दोष-विशेष-वस्तु को क्षणिक मानने पर कृतनाश और अकृत-अभ्यागम आदि दोषों की प्राप्ति / 7. नित्यदोष-विशेष-वस्तु को सर्वथा नित्य मानने पर प्राप्त होने वाले दोष के विशेष प्रकार। 8. अधिकदोष-विशेष-वादकाल में दृष्टान्त, उपनय आदि का अधिक प्रयोग / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org