________________ 716 ] [ स्थानाङ्गसूत्र दृष्टिगाव-सूत्र ६२-दिट्टिवायस्स णं दस णामधेज्जा पण्णता, तं जहा-दिदिवाएति वा, हेउवाएति वा, भूयवाएति वा, तच्चावाएति वा, सम्मावाएति वा, धम्मावाएति वा, भासाविजएति वा, पुव्वगतेति वा, अणुजोगगतेति वा, सव्वपाणभूतजीवसत्तसुहावहेति वा। दष्टिवाद नामक बारहवें अंग के दश नाम कहे गये हैं। जैसे१. दृष्टिवाद-अनेक दृष्टियों से या अनेक नयों की अपेक्षा वस्तु-तत्त्व का प्रतिपादन करने वाला। 2. हेतुवाद-हेतु-प्रयोग से या अनुमान के द्वारा वस्तु की सिद्धि करने वाला। 3. भूतवाद-भूत अर्थात् सद्-भूत पदार्थों का निरूपण करने वाला। 4. तत्त्ववाद या तथ्यवाद सारभूत तत्त्व का, या यथार्थ तथ्य का प्रतिपादन करने वाला। 5. सम्यग-वाद—पदार्थों के सत्य अर्थ का प्रतिपादन करने वाला। 6. धर्मवाद-वस्तु के पर्यायरूप धर्मों का, अथवा चारित्ररूप धर्मका प्रतिपादन करने वाला। 7. भाषाविचय, या भाषाविजय सत्य आदि अनेक प्रकार की भाषाओं का विचय अर्थात् निर्णय करने वाला, अथवा भाषाओं की विजय अर्थात् समृद्धि का वर्णन करने वाला। 8. पूर्वगत सर्वप्रथम गणधरों के द्वारा ग्रथित या रचित उत्पादपूर्व आदि का वर्णन करने वाला। 6. अनुयोगगत-प्रथमानुयोग, गण्डिकानुयोग आदि अनुयोगों का वर्णन करने वाला। 10. सर्वप्राण-भूत-जीव-सत्त्व-सुखावह-सभी द्वीन्द्रियादि प्राणी, वनस्पतिरूप भूत, पंचेन्द्रिय जीव और पृथिवी आदि सत्त्वों के सुखों का प्रतिपादन करने वाला (62) / शस्त्र-सूत्र ६३-दसविधे सत्थे पण्णत्ते, त जहासंग्रह-श्लोक सत्यमग्गी विसं लोणं, सिणेहो खारमंबिलं / दुप्पउत्तो मणो वाया, कामो भावो य अविरती // 1 // शस्त्र दश प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. अग्निशस्त्र, 2. विषशस्त्र, 3. लवणशस्त्र, 4. स्नेहशस्त्र, 5. क्षारशस्त्र, 6. अम्लशस्त्र, 7. दुष्प्रयुक्त मन, 8. दुष्प्रयुक्त वचन, 6. दुष्प्रयुक्त काय, 10. अविरति भाव (63) / विवेचन-जीव-घात या हिंसा के साधन को शस्त्र कहते हैं। वह दो प्रकार का होता हैद्रव्य-शस्त्र और भाव-शस्त्र / सूत्रोक्त 10 प्रकार के शस्त्रों में से आदि के छह द्रव्य-शस्त्र हैं और अन्तिम चार भाव-शस्त्र हैं / अग्नि आदि से द्रव्य-हिंसा होती है और दुष्प्रयुक्त मन आदि से भावहिंसा होती है। लवण, क्षार, अम्ल आदि वस्तुओं के सम्बन्ध से सचित्त वनस्पति, आदि अचित्त हो जाती हैं। इसी प्रकार स्नेह-तेल-घृतादि से भी सचित्त वस्तु अचित्त हो जाती है, इसलिए लवण आदि को भी शस्त्र कहा गया है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org