________________ दशम स्थान ] [ 713 5. मनःसंक्लेश-मन के उद्वेग से होने वाला संक्लेश / 6. वाक्-संक्लेश-वचन के निमित्त से होने वाला संक्लेश / 7. काय-संक्लेश-शरीर के निमित्त से होने वाला संक्लेश / 8. ज्ञान-संक्लेश-ज्ञान की अशुद्धि से होने वाला संक्लेश / 1. दर्शन-संक्लेश-~-दर्शन को अशुद्धि से होने वाला संक्लेश / 10. चारित्र-संक्लेश-चारित्र की अशुद्धि से होने वाला संक्लेश (86) / ८७-दसविहे असंकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा-उवहिप्रसंकिलेसे, (उवस्सयससंकिलेसे, कसायप्रसंकिलेसे, भत्तपाणप्रसंकिलेसे, मणप्रसंकिलेसे, वइप्रसंकिलेसे, कायअसंकिलेसे, णाणसंकिलेसे, दसणसंकिलेसे), चरित्तप्रसंकिलेसे / असंक्लेश (विमल भाव) दश प्रकार का कहा गया है / जैसे१. उपधि-असंक्लेश-उपधि के निमित्त से संक्लेश न होना। 2. उपाश्रय-असंक्लेश-निवासस्थान के निमित्त से संक्लेशन होना / 3. कषाय-असंक्लेश-कषाय के निमित्त से संक्लेशन होना / 4. भक्त-पान-असंक्लेश--आहारादि के निमित्त से संक्लेश न होना / 5. मन:-असंक्लेश-मन के निमित्त से संक्लेशन होना, मन की विशुद्धि / 6. वाक-असंक्लेश-वचन के निमित्त से संक्लेशन होना। 7. काय-असंक्लेश-शरीर के निमित्त से संक्लेशन होना / 5. ज्ञान-असंक्लेश--ज्ञान की 6. दर्शन-प्रसंक्लेश-सम्यग्दर्शन की निर्मलता। 10. चारित्र-असंक्लेश-चारित्र की निर्मलता (87) / बल-सूत्र ८८-दसविधे बले पण्णते, तं जहा-सोतिदियबले, (चविखदियबले, घाणिदियबले, जिभिदियबले), फासिदियबले, पाणबले, सणबले, चरित्तबले, तवबले, वोरियबले / बल दश प्रकार का कहा गया है। जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय-बल। 2. चक्षुरिन्द्रिय-बल / 2. घ्राणेन्द्रिय-बल। 4. रसनेन्द्रिय बल। 5. स्पर्शनेन्द्रिय-बल / 6. ज्ञानबल। 7. दर्शन-बल। 8. चारित्रबल / 6. तपोबल / 10. वीर्यबल (88) / भाषा-सूत्र ८६-दसविहे सच्चे पण्णत्ते, तं जहासंग्रहणी-गाहा जणवय सम्मय ठवणा, शामे रूबे पड़च्चसच्चे य / ववहार भाव जोगे, दसमे प्रोवम्मसच्चे य // 1 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org