________________ 714] [स्थानाङ्गसूत्र सत्य दश प्रकार का कहा गया है / जैसे१. जनपद-सत्य-जिस जनपद के निवासी जिस वस्तु के लिए जो शब्द बोलते हैं, उसे वहां पर बोलना / जैसे कन्नड़ देश में जल के लिए 'नीरु' बोलना। 2. सम्मत-सत्य-जिस वस्तु के लिए जो शब्द रूढ है, उसे ही बोलना / जैसे कमल को पंकज बोलना। 3. स्थापना-सत्य-निराकार वस्तु में साकार वस्तु की स्थापना कर बोलना / जैसे शतरंज की गोटों को हाथी, आदि कहना / 4. नाम-सत्य-गुण-रहित होने पर भी जिसका जो नाम है, उसे उस नाम से पुकारना / जैसे निर्धन को लक्ष्मीनाथ कहना / 5. रूप-सत्य-किसी रूप या वेष के धारण करने से उसे वैसा बोलना। जैसे स्त्री वेषधारी पुरुष को स्त्री कहना। 6. प्रतीत्य-सत्य-अपेक्षा से बोला गया वचन प्रतीत्य सत्य कहलाता है। जैसे अनामिका अंगुली को कनिष्ठा की अपेक्षा बड़ी कहना और मध्यमा की अपेक्षा छोटी कहना। 7. व्यवहार-सत्य-लोक-व्यवहार में बोले जाने वाले शब्द व्यवहार-सत्य कहलाते हैं। जैसे—पर्वत जलता है। वास्तव में पर्वत नहीं जलता, किन्तु उसके ऊपर स्थित वृक्ष आदि जलते हैं। 8. भाव-सत्य-व्यक्त पर्याय के आधार से बोला जाने वाला सत्य / जैसे- काक के भीतर रक्त-मांस आदि अनेक वर्ण की वस्तुएं होने पर भी उसे काला कहना / 6. योग-सत्य-किसी वस्तु के संयोग से उसे उसी नाम से बोलना / जैसे---दण्ड के संयोग से पुरुष को दण्डी कहना / 10. औषम्यसत्य-किसी वस्तु की उपमा से उसे वैसा कहना / जैसे---चन्द्र के समान सौम्य ____ मुख होने से चन्द्रमुखी कहना (86) / १०-दसविधे मोसे पण्णत्ते, तं जहा कोधे माणे माया, लोभे पिज्जे तहेव दोसे य / हास भए अक्खाइय, उवघात णिस्सिते दसमे // 1 // मृषा (असत्य) वचन दश प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. क्रोध-निश्रित-मृषा-क्रोध के निमित्त से असत्य बोलना। 2. मान-निश्रित-मृषा-मान के निमित्त से असत्य बोलना / 3. माया-निश्रित-मृषा—माया के निमित्त से असत्य बोलना / 4. लोभ-निधित-मृषा-लोभ के निमित्त से असत्य बोलना / 5. प्रेयोनिश्रित-मृषा--राग के निमित्त से असत्य बोलना / 6. द्वेष-निश्रित-मृषा--द्वेष के निमित्त से असत्य बोलना / 7. हास्य-निश्रित-मृषा-हास्य के निमित्त से असत्य बोलना / 8. भय-निश्रित-मृषा-भय के निमित्त से असत्य बोलना / 9. आख्यायिका-निश्रित-मृषा-आख्यायिका अर्थात् कथा-कहानी को सरस या रोचक बनाने के निमित्त से असत्य मिश्रण कर बोलना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org