________________ दशम स्थान ] [711 ८२-एएसि णं दस विधाणं भवणवासीणं देवाणं दस चेइयरुक्खा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा अस्सत्थ सत्तिवण्णे, सामलि उंबर सिरीस दहिवण्णे। वंजुल-पलास-बग्घा, तते य कणियाररुक्खे // 1 // इन दशों प्रकार के भवनवासी देवों के दश चैत्यवृक्ष कहे गये हैं / जैसे१. असुरकुमार का चैत्यवृक्ष--अश्वत्थ (पीपल)। 2. नागकुमार का चैत्यवृक्ष-सप्तपर्ण (सात पत्ते वाला) वृक्ष विशेष / 3. सुपर्णकुमार का चैत्यवृक्ष-शाल्मलो (सेमल) वृक्ष / 4. विद्य त्कुमार का चैत्यवृक्ष-उदुम्बर (गूलर) वृक्ष / 5. अग्निकुमार का चैत्यवृक्ष-शिरीष (सिरीस) वृक्ष / 6. द्वीपकुमार का चैत्यवृक्ष-दधिपर्ण वृक्ष / / 7. उदधिकुमार का चैत्यवृक्ष-वजुल (अशोक वृक्ष)। 8. दिशाकुमार का चैत्यवृक्ष-पलाश वृक्ष / 6. वायुकुमार का चैत्यवृक्ष-व्याघ्र (लाल एरण्ड) वृक्ष / 10. स्तनितकुमार का चैत्यवृक्ष-कणिकार (कनेर) वृक्ष (82) / सौख्य-सूत्र ८३–दसविधे सोक्खें पण्णत्ते, तं जहा आरोग्ग दोहमाउं, अडढे काम भोग संतोसे / अस्थि सुहभोग णिक्खम्भमेव तत्तो अणावाहे // 1 // सुख दश प्रकार का कहा गया है। जैसे१. आरोग्य (नीरोगता)। 2. दीर्घ आयुष्य / 3. आढयता (धन की सम्पन्नता) / 4. काम (शब्द और रूप का सुख)। 5. भोग (गन्ध, रस और स्पर्श का सुख), 6. सन्तोष-निर्लोभता। 7. अस्ति--जब जिस वस्तु को आवश्यकता हो, तब उसकी पूर्ति हो जाना / 8. शुभभोग-~सुन्दर, रम्य भोगों की प्राप्ति होना। 6. निष्क्रमण-प्रवजित होने का सुयोग मिलना। 10. अनाबाध-जन्म-मृत्यु प्रादि की बाधाओं से रहित मुक्ति-सुख / उपघात-विशोधि-सूत्र ८४–दसविधे उवघाते पण्णत्ते, तं जहा उग्गमोवधाते, उपायणोवघाते, (एसणोक्याते, परिकम्मोवघाते), परिहरणोयघाते, णाणोवघाते, दंसणोवधाते, चरित्तोवघाते, प्रचियत्तोवघाते, सारक्खणोवधाते। उपघात दश प्रकार का कहा गया है / जैसे१. उद्गमदोष-भिक्षासम्बन्धी दोष से होने वाला चारित्र का धात / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org