________________ 710] [ स्थानाङ्गसूत्र अर्हन् चन्द्रप्रभ दश लाख पूर्व वर्ष की पूर्ण आयु पालकर सिद्ध, बुद्ध मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत और समस्त दुःखों से रहित हुए (75) / __ ७६-धम्मे णं अरहा दस वाससयसहस्साई सम्वाउयं पालइत्ता सिद्ध (बुद्ध मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख) प्पहीणे / अर्हन् धर्मनाथ दश लाख वर्ष की पूर्ण आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत और समस्त दुःखों से रहित हुए (76) / ७७--णमी णं अरहा दस बाससहस्साई सम्वाउयं पालइत्ता सिद्ध (बुद्ध मुत्ते अंतगडे परिणिन्वुडे सव्वदुक्ख) पहोणे। अर्हन् नमि दश हजार वर्ष की पूर्ण आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत और समस्त दुःखों से रहित हुए (77) / वासुदेव-सूत्र ७८-पुरिससीहे णं वासुदेवे दस वाससयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता छट्ठीए तमाए पुढवीए रइयत्ताए उववण्णे। पुरुषसिंह नाम के पांचवें वासुदेव दश लाख वर्ष की पूर्ण अायु भोगकर 'तमा' नाम को छठी पृथिवी में नारक रूप से उत्पन्न हुए (78) / तीर्यकर-सूत्र ७६-मी अरहा दस धण्इं उड्न उच्चत्तेणं, दस य वाससयाई सघाउयं पालइत्ता सिद्ध (बुद्ध मुत्ते अंतगडे परिणिन्वुडे सव्वदुक्ख) प्पहीणे / अर्हत् नेमि के शरीर की ऊंचाई दश धनुष की थी। वे एक हजार वर्ष की आयु पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत और समस्त दुःखों से रहित हुए (76) / वासुदेव-सूत्र ८०-कण्हे णं वासुदेवे दस धणूइं उड्डे उच्चत्तेणं, दस य वाससयाइं सवाउयं पालइत्ता तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववण्णे / वासुदेव कृष्ण के शरीर को ऊंचाई दश धनुष को थी। वे दश सौ (1000) वर्ष की पूर्णायु पालकर 'वालुकाप्रभा' नाम की तीसरी पृथिवी में नारक रूप से उत्पन्न हुए (80) / भवनबासि-सूत्र ८१–दसविहा भवणवासी देवा पण्णता, तं जहा-असुरकुमारा जाव थपियकुमारा। भवनवासी देव दश प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. असुरकुमार, 2. नागकुमार, 3. सुपर्णकुमार, 4. विद्युत्कुमार 5. अग्निकुमार, 6. द्वीपकुमार, 7. उदधि कुमार, 8. दिशाकुमार 6. वायुकुमार, 10. स्तनितकुमार (81) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org