________________ 706 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 5. प्रदेश-अनन्त-प्रदेशों की अपेक्षा 'अनन्त' की गणना / 6. एकत:अनन्त----एक ओर से अनन्त, जैसे अतीतकाल की अपेक्षा अनन्त समयों की गणना / 7. द्विधा-अनन्त-दोनों ओर से अनन्त, जैसे--अतीत और अनागत काल की अपेक्षा अनन्त समयों की गणना। 8. देश-विस्तार-अनन्त-दिशा या प्रतर की दृष्टि से अनन्त गणना। 6. सर्वविस्तार-अनन्त क्षेत्र की व्यापकता की दृष्टि से अनन्त / 10. शाश्वत-अनन्त-शाश्वतता या नित्यता की दृष्टि से अनन्त (66) / पूर्ववस्तुसूत्र ६७--उप्पायपुवस्स णं दस वत्थू पण्णत्ता। उत्पादपूर्व के वस्तु नामक दश अध्याय कहे गये हैं (67) / ६८–अस्थिणस्थिप्पवायपुवस्स णं दस चूलवत्थू पण्णत्ता। अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व के चूलावस्तु नामक दश लघु अध्याय कहे गये हैं (68) / प्रतिषेवना-सूत्र ६६-दसविहा पडिसेवणा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा दप्प पमायऽणाभोगे, पाउरे प्रावतीसु य। संकिते सहसक्कारे, भयप्पनोसा य वीमंसा // 1 // प्रतिषेवना दश प्रकार की कही गई है। जैसे 1. दर्पप्रतिषेवना, 2. प्रमोदप्रतिषेवना, 3. अनाभोगप्रतिषेवना, 4. आतुरप्रतिषेवना 5. आपत्प्रतिषेवना, 6. शंकितप्रतिषेवना, 7. सहसाकरणप्रतिषेवना, 8. भयप्रतिषेवना, 6. प्रदोषप्रतिषेवना, 10. विमर्शप्रतिषेवना। विवेचन–गृहीत व्रत की मर्यादा के प्रतिकूल आचरण और खान-पान आदि करने को प्रतिषेवणा या प्रतिसेवना कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में कही गई प्रतिसेवनाओं का स्पष्टीकरण इस प्रकार है 1. दर्पप्रतिसेवना-दर्प या उद्धत भाव से जीव-घात आदि करना / 2. प्रमादप्रतिसेवना--विकथा आदि प्रमाद के वश जीव-घात आदि करना। 3. अनाभोगप्रतिसेवना--विस्मृतिवश या उपयोगशून्यता से अयोग्य वस्तु का सेवन करना। 4. प्रातुरप्रतिसेवना-भूख-प्यास प्रादि से पीड़ित होकर अयोग्य वस्तु का सेवन करना / 5. आपत्प्रतिसेवना-आपत्ति आने पर अयोग्य कार्य करना। 6. शंकितप्रतिसेवना--एषणीय वस्तु में भी शंका होने पर उसका सेवन करना / 7. सहसाकरणप्रतिसेवना-अकस्मात् किसी अयोग्य वस्तु का सेवन हो जाना। 8. भयप्रतिसेवना-भय-वश किसी अयोग्य वस्तु का सेवन करना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org