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________________ दशम स्थान] [705 ६१–सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो। जधा सक्कस्स तथा सवेसि लोगपालाणं, सम्वेसि च इंदाणं जाव अच्चुयत्ति / सव्वेसि पमाणमेगं। देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज सोम के सोमप्रभ नामक उत्पातपर्वत का वर्णन शक के उत्पातपर्वत के समान जानना चाहिए। शेष सभो लोकपालों के उत्पातपर्वतों का, तथा अच्युतकल्पपर्यन्त सभी इन्द्रों के उत्पातपर्वतों की ऊंचाई आदि का प्रमाण एक ही समान जानना चाहिए (61) / अवगाहना-सूत्र ६२-~-बायरवणस्सइकाइयाणं उक्कोसेणं दस जोयणसयाई सरीरोगाहणा पण्णत्ता। बादर वनस्पतिकायिक जीवों के शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना दश सौ (1000) योजन (उत्सेध योजन) कही गई है। (यह अवगाहना कमल की नाल की अपेक्षा से है) (62) / ६३---जलचर-पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं दस जोयणसताइं सरीरोगाहणा पण्णत्ता। जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों के शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना दश सौ (1000) योजन कही गई है (63) / ६४-उरपरिसप्प-थलचर-पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं (दस जोयणसताई सरोरोगाहणा पण्णत्ता)। उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों के शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना दश सौ (1000) योजन कही गई है (64) / तीर्थकर-सूत्र ६५–संभवानो णं अरहातो अभिणंदणे अरहा दसहि सागरोवमकोडिसतसहस्सेहि वोतिक्कतेहि समुप्पण्णे। अर्हन् संभव के पश्चात् अभिनन्दन अर्हन् दश लाख करोड़ सागरोपम बीत जाने पर उत्पन्न हुए थे (65) / अनन्त-भेद-सूत्र ६६-दसविहे अणंतए पण्णत्ते, तं जहा--णामाणंतए ठवणाणतए, दव्वाणंतए, गणणाणतए, पएसाणंतए, एगतोणतए, दुहतोणंतए, देसवित्थाराणंतए, सम्ववित्थाराणंतए सासताणतए / अनन्त दश प्रकार का कहा गया है / जैसे---- 1. नाम-अनन्त-किसी वस्तु का 'अनन्त' ऐसा नाम रखना। 1. स्थापना-अनन्त-किसी वस्तु में 'अनन्त' की स्थापना करना / 3. द्रव्य-अनन्त-परिमाण की दृष्टि से 'अनन्त' का व्यवहार करना / 4. गणना-अनन्त-गिनने योग्य वस्तु के विना ही एक, दो, तीन, संख्यात, असंख्यात, अनन्त, इस प्रकार गिनना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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