________________ 704] गिसूत्र वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के लोकपाल महाराज सोम, यम, वैश्रमण और वरुण के स्व-स्व नामवाले उत्पातपर्वतों की ऊंचाई एक-एक हजार योजन, गहराई एक-एक हजार गव्यूति और मूलभाग का विस्तार एक-एक हजार योजन कहा गया है (53) / ५४–धरणस्स णं णागकुमारिदस्स णागकुमाररणो धरणप्यमे उप्पातपन्वते दस जोयणसयाई उड्ड उच्चत्तेणं, दस गाउयसताई उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसताई विक्खंभेणं / नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण का धरणप्रभ नामक उत्पातपर्वत दश सौ (1000) योजन ऊंचा, दश सौ गव्यूति गहरा और मूल में दश सौ (1000) योजन विस्तार वाला कहा गया है (54) / ५५--धरणस्स णं णागकुमारिदस्स णागकुमाररण्णो कालवालस्स महारणो कालवालप्पभे उप्पातपन्वते जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं एवं चेव / नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज के लोकपाल कालपाल महाराज का कालपालप्रभ नामक उत्पातपर्वत दश सौ योजन ऊंचा, दश सौ गव्यूति गहरा और मूलमें दश सौ योजन विस्तार वाला कहा गया है (55) / ५६-एवं जाव संखवालस्स / इसी प्रकार कोलपाल, शैलपाल और शंखपाल नामक लोकपालों के स्व-स्व नामवाले उत्पातपर्वतों की ऊंचाई, गहराई और मूल में विस्तार जानना चाहिए (56) / ५७–एवं भूताणंदस्सवि। इसी प्रकार भूतेन्द्र भूतराज भूतानन्द के भूतानन्दप्रभ नामक उत्पातपर्वत को ऊंचाई एक हजार योजन, गहराई एक हजार गव्यूति, और मूल का विस्तार एक हजार योजन जानना चाहिए (57) / 58- एवं लोगपालाणवि से, जहा घरणस्स / इसी प्रकार भूतानन्द के लोकपाल महाराज कालपाल, कोलपाल, शंखपाल और शैलपाल के स्व-स्व नामवाले उत्पातपर्वतों की ऊंचाई एक-एक हजार योजन, गहराई एक-एक हजार गव्यूति, और मूल में विस्तार एक-एक हजार योजन धरण के समान जानना चाहिए (58) / ५६-एवं जाव थणितकुमाराणं सलोगपालाणं भाणियध्वं, सव्वेसि उप्पायपब्वया भाणियव्वा सरिसणामगा। इसी प्रकार सुपर्णकुमार यावत् स्तनितकुमार देवों के इन्द्रों के और उनके लोकपालों के स्वस्वनामवाले उत्पातपर्वतों की ऊंचाई, गहराई और मूलमें विस्तार धरण तथा उनके लोकपालों के समान जानना चाहिए (56) / ६०–सक्कस्स णं देविदस्स देवरगणो सक्कप्पभे उप्पातपवते दस जोयणसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं, दस गाउयसहस्साई उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं पण्णत्त / देवेन्द्र देवराज शक्र के शक्रप्रभ नामक उत्पात पर्वत की ऊंचाई दश हजार योजन, गहराई दश हजार गव्यूति और मूल में विस्तार दस हजार योजन कहा गया है (60) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org