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________________ दशम स्थान ] [703 7. बाह्याबाह्यानुयोग-इस अनुयोग में एक द्रव्य की दूसरे द्रव्य के साथ बाह्यता (भिन्नता) और अबाह्यता (अभिन्नता) का विचार किया गया है। 8. शाश्वताशाश्वतानुयोग--इस अनुयोग में द्रव्यों के शाश्वत (नित्य) और अशाश्वत (अनित्य) धर्मों का विचार किया गया है। 6. तथाज्ञानानुयोग-इसमें द्रव्यों के यथार्थ स्वरूप का विचार किया गया है। 10. अतथाज्ञानानुयोग-इस अनुयोग में मिथ्यादृष्टियों के द्वारा प्ररूपित द्रव्यों के स्वरूप का (अयथार्थ स्वरूप का) निरूपण किया गया है (46) / उत्पातपर्वत-सूत्र ४७–चमरस्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो तिगिछिकूडे उप्पातन्वते मूल दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्त / असुरेन्द्र, असुरकुमारराज चमर का तिगिंछकूट नामक उत्पात पर्वत मूल में दश सौ बाईस (1022) योजन विस्तृत कहा गया है (47) / ४८-चमरस्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो सोमस्स महारणो सोमपभे उप्पातपन्वते दस जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तणं, दस गाउयसताई उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ते। असुरेन्द्र असुरकूमारराज चमर के लोकपाल महाराज सोम का सोमप्रभ नामक उत्पातपर्वत दश सौ (1000) योजन ऊंचा, दश सौ गव्यूति भूमि में गहरा और मूल में दश सौ (1000) योजन विस्तृत कहा गया है (48) / ४६–चमरस्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो जमस्स महारण्णो जमप्पमे उप्पातपवते एवं चेव। असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के लोकपाल यम महाराज का यमप्रभनामक उत्पातपर्वत सोम के उत्पातपर्वत के समान ही ऊंचा, गहरा और विस्तार वाला कहा गया है (46) / ५०–एवं वरुणस्सवि। इसी प्रकार वरुण लोकपाल का उत्पातपर्वत भी जानना चाहिए (50) / ५१-एवं वेसमणस्सवि / इसी प्रकार वैश्रमण लोकपाल का उत्पातपर्वत भी जानना चाहिए (51) / ५२--बलिस्स णं वइरोणिदस्स वइरोयणरण्णो रुयागदे उप्पातपन्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्त। वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलिका रुचकेन्द्र नामक उत्पातपर्वत मूल में दश सौ बाईस (1022) योजन विस्तृत कहा गया है (52) / ५३--बलिस्स णं वइरोर्याणदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स एवं चेव, जधा चमरस्स लोगपालाणं तं चेव बलिस्सवि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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