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________________ दशम स्थान ] [701 पर्वत-सूत्र ३६-धायइसंडगाणं मंदरा दसजोयणसयाई उव्वेहेणं, धरणीतले देसूणाई दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, उरि दस जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता। धातकीषण्ड के मन्दर पर्वत भूमि में एक हजार योजन गहरे, भूमितल पर कुछ कम दश हजार योजन विस्तृत और ऊपर एक हजार योजन विस्तृत कहे गये हैं (36) / ३७–पुक्खरवरदीवड्ढगा णं मंदरा दस जोयणसयाइं उन्वेहेणं, एवं चेव / पुष्करवरद्वीपार्ध के मन्दर पर्वत इसी प्रकार भूमि में एक हजार योजन गहरे, भूमितल पर कुछ कम दश हजार योजन विस्तृत और ऊपर एक हजार योजन कहे गये हैं (37) / ३८-सव्वेवि णं बट्टवेयझपन्चता दस जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, दस गाउयसयाई उन्हेणं, सम्वत्थ समा पल्लागसंठिता, दस जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता। सभी वृत्तवैताढ्य पर्वत एक हजार योजन ऊंचे, एक हजार गव्यूति (कोश) गहरे, सर्वत्र समान विस्तार वाले, पल्य के आकार से संस्थित और दश सौ (एक हजार) योजन विस्तृत कहे गये हैं (38) / क्षेत्र-सूत्र ३६-जंबुद्दीवे दोवे दस खेत्ता पण्णत्ता, तं जहा—भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवते, हरिवस्से, रम्मगवस्से, पुव्वविदेहे, अवरविदेहे, देवकुरा, उत्तरकुरा। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में दश क्षेत्र कहे गये हैं। जैसे--- 1. भरत क्षेत्र, 2. ऐरक्त क्षेत्र, 3. हैमवत क्षेत्र, 4. हैरण्यवत क्षेत्र, 5. हरिवर्ष क्षेत्र, 6. रम्यकवर्ष क्षेत्र, 7. पूर्व विदेह क्षेत्र, 8. अपरविदेह क्षेत्र, 6. देवकुरु क्षेत्र, 10. उत्तरकुरु क्षेत्र (36) / पर्वत-सूत्र 40 -माणुसुत्तरे णं पवते मूले दस बावोसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते / मानुषोत्तर पर्वत मूल में दश सौ बाईस (1022) योजन विस्तारवाला कहा गया है (40) / __४१-सब्वेवि णं अंजण-पब्वता दस जोयणसयाई उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, उरि दस जोयणसताई विखंभेणं पण्णत्ता। सभी अंजन पर्वत दश सौ (1000) योजन गहरे, मूल में दश हजार योजन विस्तृत, और ऊपर दश सौ (1000) योजन विस्तार वाले कहे गये हैं (41) / ४२-सवेवि णं दहिमहपव्वता दस जोयणसताई उज्वेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठिता, दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं पण्णत्ता। सभी दधिमुखपर्वत भूमि में दश सौ योजन गहरे, सर्वत्र समान विस्तारवाले, पल्य के आकार से संस्थित और दश हजार योजन चौड़े कहे गये हैं (42) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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