________________ दशम स्थान ] [697 संयम-असंयम-सूत्र २२–पंचिदिया णं जीवा असमारभमाणस्स दसविधे संजमे कज्जति, तं जहा-सोतामयानो सोक्खाश्रो अववरोवेत्ता भवति / सोतामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति / (चक्खुमयानो सोक्खायो अववरोवेत्ता भवति / चक्खुमएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति / घाणामयानो सोक्खानो अववरोवेत्ता भवति : घाणामएणं दुखणं असंजोगेत्ता भवति / जिब्भामयामो सोक्खायो अववरोवेता भवति / जिन्भामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति / फासामयानो सोक्खाम्रो अववरोवेत्ता भवति / ) फासामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति / पंचेन्द्रिय जीवों का घात नहीं करने वाले के दश प्रकार का संयम होता है। जैसे-- 1. श्रोत्रेन्दिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से / 2. श्रोत्रेन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से / 3. चक्षुरिन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से / 4. चक्षारन्द्रय-सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से / 5. घ्राणेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से / 6. घ्राणेन्द्रिय-सम्बन्धी दु:ख का संयोग नहीं करने से। 7. रसनेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से / 8. रसनेन्द्रिय-सम्बन्धी दु:ख का संयोग नहीं करने से / ह, स्पर्शनेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से। 10. स्पर्शनेन्द्रिय-सम्बन्धी दु:ख का संयोग नहीं करने से (22) / २३-पंचिदिया णं जीवा समारभमाणस्स दसविधे असंजमे कज्जति, तं जहा-सोतामयानो सोक्खाप्रो ववरोवेत्ता भवति / सोतामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति / चक्खुमयानो सोक्खामो ववरोवेत्ता भवति / चक्खुमएणं दुक्खेणं संजोगेता भवति / घाणामयानो सोक्खायो ववरोवेत्ता ति / घाणामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति / जिब्भामयामो सोक्खायो ववरोवेत्ता भवति / जिब्भा खणं संजोगेत्ता भवति / फासामयामो सोक्खाग्रो ववरोवत्ता भवति / फासामएणं दृक्खेण संजोगेत्ता भवति / पंचेन्द्रिय जीवों का घात करने वाले के दश प्रकार का असंयम होता है / जैसे१. श्रोग्रेन्द्रिय-सम्बन्धी सूख का वियोग करने से। 2. श्रोनेन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से / 3. चक्षुरिन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग करने से। 4. चक्षुरिन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से / 5. घ्राणेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग करने से / 6 घ्राणेन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से / 7. रसनेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग करने से / 8. रसनेन्द्रिय-सम्बन्धी दु:ख का संयोग करने से / 6. स्पर्शनेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग करने से / 10. स्पर्शनेन्द्रिय-सम्बन्धो दुःख का संयोग करने से (23) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org