________________ 666 ] [ स्थानाङ्गसूत्र जीव का परिणाम दश प्रकार का कहा गया है / जैसे१. गति-परिणाम, 2. इन्द्रिय-परिणाम, 3. कषाय-परिणाम, 4. लेश्या-परिणाम, 5. योग-परिणाम, 6. उपयोग-परिणाम, 7. ज्ञान-परिणाम, 8. दर्शन-परिणाम 6. चारित्रपरिणाम, 10. वेद-परिणाम (18) / १६–दसविधे अजीवपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-बंधणपरिणामे, गतिपरिणामे, संठाणपरिणामे, भेदपरिणामे, वण्णपरिणामे, रसपरिणामे, गंधपरिणामे, फासपरिणामे, अगुरुलहुपरिणामे, सद्दपरिणामे। अजीव का परिणाम दश प्रकार का कहा गया है / जैसे१. बन्धन-परिणाम, 2. गति-परिणाम, 3. संस्थान-परिणाम, 4. भेद-परिणाम, 5. वर्णपरिणाम, 6. रस-परिणाम, 7. गन्ध-परिणाम, 8. स्पर्श-परिणाम, 6. अगुरु-लघु-परिणाम, 10. शब्द-परिणाम (16) / अस्वाध्याय-सूत्र २०-दसविधे अंतलिक्खए असज्झाइए पण्णत्ते, तं जहा- उक्कावाते, दिसिदाघे, गज्जिते, विज्जुते, णिग्धाते, जुवए, जक्खालित्ते, धूमिया, महिया, रयुग्धाते / अन्तरिक्ष (आकाश)-सम्बन्धी अस्वाध्यायकाल दश प्रकार का कहा गया है / जैसे१. उल्कापात-अस्वाध्याय-बिजली गिरने या तारा टूटने पर स्वाध्याय नहीं करना / 2. दिग्दाह-दिशाओं को जलती हुई देखने पर स्वाध्याय नहीं करना / 3. गर्जन-आकाश में मेघों को धोर गर्जना के समय स्वाध्याय नहीं करना / 4. विद्य त-तडतडाती हुई बिजली के चमकने पर स्वाध्याय नहीं करता। 5. निर्घात–मेघों के होने या न होने पर आकाश में व्यन्तरादिकृत घोर गर्जन या वज्रपात के होने पर स्वाध्याय नहीं करना / 6. यूपक-सन्ध्या की प्रभा और चन्द्रमा की प्रभा एक साथ मिलने पर स्वाध्याय नहीं करना। 7. यक्षादीप्त-यक्षादि के द्वारा किसी एक दिशा में बिजली जैसा प्रकाश दिखने पर स्वाध्याय नहीं करना। 8. धूमिका-कोहरा होने पर स्वाध्याय नहीं करना। 6. महिका-तुषार या बर्फ गिरने पर स्वाध्याय नहीं करना / / 10. रज-उद्घात--तेज आँधी से धूलि उड़ने पर स्वाध्याय नहीं करना (20) / २१–दसविधे पोरालिए असज्झाइए पण्णत्ते, तं जहा–अट्टि, मंसे, सोणिते, असुइसामंते, सुसाणसामंते, चंदोवराए, सूरोवराए, पडणे, रायवुग्गहे, उवस्सयस्स अंतो ओरालिए सरीरगे। औदारिक शरीर सम्बन्धी अस्वाध्याय दश प्रकार का कहा गया है / जैसे१. अस्थि, 2, मांस, 3. रक्त, 4. अशुचि 5. श्मशान के समीप होने पर, 6. चन्द्र-ग्रहण, 7. सूर्य-ग्रहण के होने पर, 8. पतन-प्रमुख व्यक्ति के मरने पर, 6. राजविप्लव होने पर, 10. उपाश्रय के भीतर सौ हाथ औदारिक कलेवर के होने पर स्वाध्याय करने का निषेध किया गया है (21) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org