SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 763
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशम स्थान ] [ 665 3. परिद्य नाप्रव्रज्या-दरिद्रता से ली जाने वाली दीक्षा / 4. स्वप्नाप्रव्रज्या स्वप्न देखने से ली जाने वाली, या स्वप्न में ली जाने वाली दीक्षा / 5 प्रतिश्रु ता प्रव्रज्या-पहले की हुई प्रतिज्ञा के कारण ली जाने वाली दीक्षा / 6. स्मारणिका प्रव्रज्या पूर्व जन्मों का स्मरण होने पर ली जाने वाली दीक्षा / 7. रोगिणिका प्रव्रज्या--रोग के हो जाने पर ली जाने वाली दीक्षा / 8. अनादृता प्रव्रज्या---अनादर होने पर ली जाने वाली दीक्षा। 6. देवसंज्ञप्ति प्रव्रज्या-देव के द्वारा प्रतिबुद्ध करने पर ली जाने वाली दीक्षा / 10. वत्सानुबन्धिका प्रव्रज्या-दीक्षित होते हुए पुत्र के निमित्त से ली जाने वाली दीक्षा (15) / श्रमणधर्म-सूत्र १६-दसविधे समणधम्मे एण्णत्ते, तं जहा–खती, मुत्ती, अज्जवे, महवे, लाघवे, सच्चे, संजमे तवे, चियाए, बंभचेरवासे / श्रमण-धर्म दश प्रकार का कहा गया है / जैसे१. क्षान्ति (क्षमा धारण करना), 2. मुक्ति (लोभ नहीं करना), 3. आर्जव (मायाचार नहीं करना), 4. मार्दव (अहंकार नहीं करना), 5. लाघव (गौरव नहीं रखना), 6. सत्य (सत्य वचन बोलना), 7. संयम धारण करना, 8. तपश्चरण करना, 6. त्याग (साम्भोगिक साधुओं को भोजनादि देना), 10. ब्रह्मचर्यवास (ब्रह्मचर्यपूर्वक गुरुजनों के पास रहना) (16) / वैयावृत्त्य-सूत्र १७-दस विधे वेयावच्चे पण्णते, तं जहा-पायरिययावच्चे, उवज्झायवेयावच्चे, थेरवेया. बच्चे, तवस्सिवेयावच्चे, गिलाणवेयावच्चे, सेहवेयावच्चे, कुलवेयावच्चे, गणवेयावच्चे, संघवेयावच्चे, साहम्मियवेयावच्चे। वैयावृत्त्य दश प्रकार का कहा गया है / जैसे१. प्राचार्य का वैयावृत्त्य, 2. उपाध्याय का वैयावृत्त्य, 3. स्थविर का वैयावृत्त्य, 4. तपस्वी का वैयावृत्त्य, 5. ग्लान का वैयावृत्त्य, 6. शैक्ष का वैयावृत्त्य, 7. कुल का वैयावृत्त्य, 8. गण का वैयावृत्त्य, 6. संघ का वैयावृत्त्य, 10. सार्मिक का व यावृत्त्य (17) / परिणाम-सूत्र १८–दसविधे जोवपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-गतिपरिणामे, इंदियपरिणामे, कसायपरिणामे, लेसापरिणामे, जोगपरिणामे, उवयोगपरिणामे, णाणपरिणामे, सणपरिणामे, चरित्तपरिणामे, वेयपरिणामे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy