________________ 664 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 6. में श्रत-पारंगत है, इस प्रकार शास्त्रज्ञान के मद से। 7. मेरे पास सबसे अधिक लाभ के साधन हैं, इस प्रकार लाभ के मद से / 8. मेरा ऐश्वर्य सबसे बढ़ा-चढ़ा है, इस प्रकार ऐश्वर्य के मद से / 6. मेरे पास नागकुमार या सुपर्णकुमार देव दौड़कर आते हैं, इस प्रकार के भाव से / 10. मुझे सामान्य जनों की अपेक्षा विशिष्ट अवधिज्ञान और अवधिदर्शन उत्पन्न हुआ है, __ इस प्रकार के भाव से (12) / समाधि-असमाधि-सूत्र १३-दसविधा समाधी पण्णत्ता, तं जहा-पाणातिवायवेरमण, मुसावायवेरमणे, अदिण्णादाणवेरमणे, मेहुणवेरमणे, परिग्गहवेरमणे, इरियासमिती, भासासमिती, एसणासमिती, प्रायाण-भंडमत्त-णिक्खेवणासमिती, उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-जल्ल-पारिद्वावणिया समिती। समाधि दश प्रकार की कही गई है। जैसे१. प्राणातिपात-विरमण, 2. मृषावाद-विरमण, 3. अदत्तादान-विरमण, 4. मैथुन-विरमण, 5. परिग्रह-विरमण, 6. ईर्यासमिति, 7. भाषासमिति, 8. एषणासमिति, 6. अमत्र निक्षेपण (पात्र निक्षेपण) समिति, 10. उच्चार-प्रस्रवण-श्लेष्म-सिंघाण-जल्ल-परिष्ठापना समिति (13) / १४-दसविधा असमाधी पण्णता, तं जहा-पाणातिवाते, (मुसावाए, अदिण्णादाणे, मेहुणे), परिग्गहे, इरियाऽसमिती, (भासऽसमिती, एसणाऽसमिती, प्रायाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणाऽसमितो), उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-जल्ल-पारिट्ठावणियाऽसमिती / असमाधि दश प्रकार की कही गई है / जैसे१. प्राणातिपात-अविरमण, 2. मृषावाद-अविरमण, 3. अदत्तादान-अविरमण, 4. मैथुन-अविरमण, 5. परिग्रह-अविरमण, 6. ई-असमिति (गमन को असावधानी), 7. भाषा-असमिति (बोलने की असावधानी) 8. एषणा-असमिति (गोचरी को असावधानी) 6. आदान-भाण्ड-अमत्र-निक्षेप की असमिति, 10. उच्चार-प्रस्रवण-श्लेष्म-सिंघाण-जल्ल-परिष्ठापना को असमिति, (14) / प्रवज्या-सूत्र १५-दसविधा पध्वज्जा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा छंदा रोसा परिजुग्णा, सुविणा पडिस्सुता चेव / सारणिया रोगिणिया, अणाढिता देवसण्णत्ती // 1 // वच्छाणुबंधिया। प्रव्रज्या दश प्रकार की कही गई है, जैसे-- 1. छन्दाप्रव्रज्या-अपनी या दूसरों की इच्छा से ली जाने वाली दीक्षा। 2. रोषाप्रव्रज्या-रोष से ली जानेवाली दीक्षा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org