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________________ दशम स्थान ] [ 663 संवर-असंवर-सूत्र १०-दसविधे संवरे पण्णत्ते, तं जहा--सोतिदियसंवरे, (चक्खिदियसंवरे, घाणिदियसंवरे, जिभिदियसंवरे), फासिदियसंवरे, मणसंवरे, वयसंवरे, कायसंवरे, उपकरणसंवरे, सूचीकुसग्गसंवरे। संवर दश प्रकार का कहा गया है / जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय-संवर, 2. चक्षुरिन्द्रिय-संवर, 3. घाणेन्द्रिय-संवर, 4. रसनेन्द्रिय-संवर, 5. स्पर्शनेन्द्रिय-संबर, 6. मन-संवर, 7. वचन-संवर, 8. काय-संवर, 6 उपकरण-संवर, 10. सूचीकुशाग्न-संवर (10) / विवेचन–प्रस्तुत सूत्र में आदि के आठ भाव-संवर और अन्त के दो द्रव्य-संबर कहे गये हैं। उपकरणों के संवर को उपकरण-संवर कहते हैं / उपधि (उपकरण) दो प्रकार की होती है--अोघउपधि और उपग्रह-उपधि / जो उपकरण प्रतिदिन काम में आते हैं उन्हें प्रोघ-उपधि कहते हैं और जो किसी कारण-विशेष से संयम की रक्षा के लिए ग्रहण किये जाते हैं उन्हें उपग्रह-उपधि कहते हैं / इन दोनों प्रकार की उपधि का यतनापूर्वक संरक्षण करना उपकरण-संबर है। / सूई और कुशाग्र का संवरण कर रखना सूची-कुशाग्र संवर कहलाता है। कांटा आदि निकालने या वस्त्र आदि सीने के लिए सूई रखो जाती है। इसी प्रकार कारण-विशेष से कुशाग्र भी ग्रहण किये जाते हैं / इनकी संभाल रखना-कि जिससे अंगच्छेद आदि न हो सके / इन दोनों पदों को उपलक्षण मानकर इसी प्रकार की अन्य वस्तुओं की भी सार-संभाल रखना सूचीकुशाग्र-संवर है / ११-दस विधे असंवरे पण्णत्ते, तं जहा-सोतिदियअसंवरे, (चक्खिदियनसंवरे, घाणिदियप्रसंवरे, जिभिदियअसंवरे, फासिदियअसंवरे, मणप्रसंवरे, वयप्रसंवरे, कायसंवरे, उपकरण प्रसंवरे), सूचीकुसग्गअसंवरे / असंवर दश प्रकार का है। जैसे-- 1. श्रोत्रेन्द्रिय-असंवर, 2. चक्षुइन्द्रिय-असंवर, 3. घ्राणेन्द्रिय असंवर, 4. रसना-इन्द्रियअसंवर, 5. स्पर्शनेन्द्रिय-असंवर, 6. मन-असंवर, 7. वचन-असंवर, 8. काय-असंवर, 6. उपकरणअसंवर, 10. सूचीकुशाग्र-प्रसंवर (11) / अहंकार-सूत्र १२–दसहि ठाणेहि अहमंतीति थंभिज्जा, तं जहा--जातिमएण वा, कुलमएण वा, (बलमएण वा, रूवमएण वा, तवमरण वा, सुतमएण वा, लाभमएण वा), इस्सरियमएण वा, णागसुवण्णा वा मे अंतियं हवमागच्छंति, पुरिसधम्मातो वा मे उत्तरिए पाहोधिए णाणदंसणे समुप्पण्णे। दश कारणों से पुरुष अपने आपको 'मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूं' ऐसा मानकर अभिमान करता है / जैसे--- 1. मेरी जाति सबसे श्रेष्ठ है, इस प्रकार जाति के मद से / 2. मेरा कल सब से श्रेष्ठ है, इस प्रकार कूल के मद से / / 3. मैं सबसे अधिक बलवान् हूं, इस प्रकार बल के मद से / 4. मैं सबसे अधिक रूपवान् हूं, इस प्रकार रूप के मद से। 5. मेरा तप सब से उत्कृष्ट है, इस प्रकार तप के मद से / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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