________________ दशम स्थान [ 661 इन्द्रियों के भविष्यकालीन विषय दश कहे गये हैं / जैसे१. अनेक जीव शरीर के एक देश से शब्द सुनेंगे। 2. अनेक जोव शरीर के सर्व देश से शब्द सनेंगे / 3. अनेक जीव शरीर के एक देश से रूप देखेंगे। 4. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से रूप देखेंगे / 5. अनेक जीव शरीर के एक देश से गन्ध सूफेंगे। 6. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से गन्ध सूघेगे। 7. अनेक जीव शरीर के एक देश से रस चखेंगे। 8. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से रस चखेंगे / 6. अनेक जीव शरीर के एक देश से स्पर्शों का वेदन करेंगे। 10. अनेक जीव शरीर के सर्व देशों से स्पर्शो का वेदन करेंगे (5) / अच्छिन्न-पुद्गल-चलन-सूत्र ६--दसहि ठाणेहि अच्छिण्णे पोग्गले चलेज्जा, तं जहा-पाहारिज्जमाणे वा चलेज्जा। परिणामेज्जमाणे वा चलेज्जा / उस्ससिज्जमाणे वा चलेज्जा। णिस्ससिज्जमाणे वा चलेज्जा / वेदेज्जमाणे वा चलेज्जा। णिज्जरिज्जमाणे वा चलेज्जा। विउविज्जमाणे वा चलेज्जा। परियारिज्जमाणे वा चलेज्जा / जक्खाइट्ठ वा चलेज्जा / वातपरिगए वा चलेज्जा। दश स्थानों से अच्छिन्न (स्कन्ध से संबद्ध) पुद्गल चलित होता है / जैसे१. आहार के रूप में ग्रहण किया जाता हुआ पुद्गल चलता है / 2. आहार के रूप में परिणत किया जाता हुअा पुद्गल चलता है। 3. उच्छ्वास के रूप में ग्रहण किया जाता हुआ पुद्गल चलता है। 4. निःश्वास के रूप में परिणत किया जाता हुआ पुद्गल चलता है / 5. वेद्यमान पुद्गल चलता है। 6. निर्जीर्यमाण पुद्गल चलता है। 7. विक्रियमाण पुद्गल चलता है / 8. परिचारणा (मैथुन) के समय पुद्गल चलता है / 6. यक्षाविष्ट पुद्गल चलता है। 10. वायु से प्रेरित होकर पुद्गल चलता है (6) / क्रोधोत्पत्ति-स्थान-सत्र ७–दसहि ठाणेहि कोधप्पत्ती सिया, तं जहा-मणुग्णाइं मे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाई प्रवहरिसु। अमणुण्णाई मे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाई उवहरिसु / मणुण्णाई मे सद्द-फरिस-रस-रूवगंधाई अवहरई। अमणुण्णाई मे सद्द-फरिस-( रस-रूव)-गंधाई उवहरति / मण्णाई मे सद्द-(फरिसरस-रूव-गंधाइं) अवहरिस्सति / प्रमणण्णाइं मे सद्द-(फरिस-रस-रूव-गंधाई) उवहरिस्सति / मणुण्णाई मे सद्द-(फरिस-रस-रूव)-गंधाई अवहरिसु वा अवहरइ वा अवह रिस्सति वा। अमणुग्णाई मे सद्द(फरिस-रस-रूव-गंधाई) उवहरिसु वा उवहरति वा उवहरिस्सति वा / मणुण्णामणुण्णाई मे सद्द(फरिस-रस-रूव-गंधाई) अवहरिसु वा अवहरति वा अवहरिस्सति वा, उबहरिसु वा उवहरति वा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org