________________ 672 ] [ स्थानाङ्गसूत्र ३६--(अग्गिच्चाणं देवाणं णव देवा णव देवसया पण्णत्ता / अग्न्यर्च देव स्वामी रूप में नौ हैं और उनके नौ सौ देवों का परिवार कहा गया है (36) / ३७-रिटाणं देवाणं णव देवा णव देवसया पण्णत्ता)। रिष्ट देव स्वामी के रूप में नौ हैं और उनके नौ सौ देवों का परिवार कहा गया है (37) / ३८–णव गेवेज्ज-विमाण-पाथडा पण्णत्ता, तं जहा–हेट्रिम-हेट्रिम-विज्ज-विमाण-पत्थडे, हेट्रिम-मज्झिम-विज्ज-विमाण-पत्थडे, हेट्रिम-उवरिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, मज्झिम-हेट्रिम-गेविज्जविमाण-पत्थडे, मज्झिम-मज्झिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, मज्झिम-उवरिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उवरिम-हेद्विमनोविज्ज-विमाण-पत्थडे, उरिम-मज्झिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उरिम-उरिमगेविज्ज-बिमाण-पत्थडे / ग्रेवेयक विमान के प्रस्तट (पटल) नौ कहे गये हैं / जैसे१. अधस्तन-त्रिक का अधस्तन वेयक विमान प्रस्तट / 2. अधस्तन त्रिक का मध्यम ग्रं वेयक विमान प्रस्तट / 3. अधस्तन त्रिक का उपरितन ग्रंवेयक विमान प्रस्तट / 4. मध्यम त्रिक का अधस्तन ग्रेवेयक विमान प्रस्तट। 5. मध्यम त्रिक का मध्यम ग्रे वेयक विमान प्रस्तट / 6. मध्यम त्रिक का उपरितन ग्रेवेयक विमान प्रस्तट / 7. उपरितन त्रिक का अधस्तन ग्रं वेयक विमान प्रस्तट। 8. उपरितन त्रिक का मध्यम ग्रेवेयक विमान प्रस्तट / 6. उपरितन त्रिक का उपरितन | वेयक विमान प्रस्तट (38) / ३६-एतेसि णं णवण्हं गेविज्ज-विमाण-पत्थडाणं णव णामधिज्जा पण्णता, तं जहासंग्रहणी-गाथा भद्दे सुभद्दे सुजाते, सोमणसे पियदरिसणे / सुदंसणे अमोहे य, सुप्पबुद्ध जसोधरे // 1 // इन वेयक विमानों के नवों प्रस्तटों के नौ नाम कहे गये हैं / जैसे 1. भद्र, 2. सुभद्र, 3. सुजात, 4. सौमनस, 5. प्रियदर्शन, 6. सुदर्शन, 7. अमोह, 8. सुप्रबुद्ध, 6. यशोधर (36) / आयुपरिणाम-सूत्र ४०–णवविहे आउपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-गतिपरिणामे, गतिबंधणपरिणामे, ठितोपरिणामे, ठितीबंधणपरिणामे, उड्ढंगारवपरिणामे, अहेगारवपरिणामे, तिरियंगारवपरिणामे, दोहंगारवपरिणामे, रहस्संगारवपरिणामे / आयुःपरिणाम नौ प्रकार का कहा गया है / जैसे१. गति परिणाम-जीव को देवादि नियत गति प्राप्त कराने वाला आयु का स्वभाव / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org