________________ 670 ] [स्थानाङ्गसूत्र 6. कलाश्रत-स्त्री-पुरुषों की कलाओं का प्रतिपादक शास्त्र / 7. प्रावरणश्रुत-भवन-निर्माण की वास्तुविद्या का शास्त्र। 8. अज्ञानश्रु त-नृत्य, नाटक, संगीत आदि का शास्त्र / / 6. मिथ्या प्रवचन--कुतीथिक मिथ्यात्वियों के शास्त्र (27) / नपुणिक-सूत्र २८~णव उणिया वत्थ पण्णत्ता, तं जहा संखाणे णिमित्ते काइए पोराणे पारिहस्थिए। परपंडिते वाई य, मूतिकम्मे तिगिच्छिए // 1 // नैपुणिक वस्तु नौ कही गई हैं। अर्थात् किसी वस्तु में निपुणता प्राप्त करने वाले पुरुष नौ प्रकार के होते हैं। जैसे 1. संख्यान नैपुणिक-गणित शास्त्र का विशेषज्ञ / 2. निमित्त नैपुणिक-निमित्त शास्त्र का विशेषज्ञ / 3. काय नैपुणिक-शरीर की इडा, पिंगला आदि नाड़ियों का विशेषज्ञ / 4. पुराण नैपुणिक-प्राचीन इतिहास का विशेषज्ञ / 5. पारिहस्तिक नैपुणिक ---प्रकृति से ही समस्त कार्यों में कुशल / 6. परपंडित-अनेक शास्त्रों को जानने वाला। 7. वादी-शास्त्रार्थ या वाद-विवाद करने में कुशल / 8. भूतिकर्म नैपुणिक----भस्म लेप करके और डोरा आदि बाँध कर चिकित्सा आदि करने में कुशल। 6. चिकित्सा नैपुणिक-शारीरिक चिकित्सा करने में कुशल (28) / विवेचन-आ० अभयदेव सुरि ने उक्त नौ प्रकार के नैपुणिक पुरुषों की व्याख्या करने के पश्चात् सूत्र-पठित 'वत्थु (वस्तु) पद के आधार पर अथवा कहकर अनुप्रवाद पूर्व के वस्तु नामक नौ अधिकारों को सूचित किया है, जिनके नाम भी ये ही हैं। गण-सूत्र २६-समणस्स णं भगवतो महावीरस्स णव गणा हुत्था, तं जहा-गोदासगणे, उत्तर-बलिस्सहगणे, उद्देहगणे, चारणगणे, उद्दवाइयगणे, विस्सवाइयगणे, कामट्टियगणे, माणवगणे, कोडियगणे / श्रमण भगवान् महावीर के नौ गण (एक-सी सामाचारी) का पालन करने वाले और एक-सी वाचना वाले साधुओं के समुदाय) थे / जैसे१. गोदासगण, 2. उत्तरबलिस्सहगण, 3. उद्देहगण, 4. चारणगण, 5. उद्दकाइयगण, 6. विस्सवाइयगण, 7. काधिकगण 8. मानवगण, 6. कोटिकगण (19) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org