________________ नवम स्थान ] [ 666 नौ विकृतियाँ कही गई हैं। जैसे 1. दूध, 2. दही, 3. नवनीत (मक्खन), 4. घी, 5. तेल, 6. गुड़, 7. मधु, 8. मद्य, 6. मांस (23) / बोन्दी-(शरीर)-सूत्र २४-णव-सोत-परिस्सवा बोंदी पण्णता, तं जहा-दो सोत्ता, दो णेत्ता, दो घाणा, मुहं, पोसए, पाऊ। शरीर नौ स्रोतों से झरने वाला कहा गया है / जैसे दो कर्णस्रोत, दो नेत्रस्रोत, दो नाकस्रोत, एक मुखस्रोत, एक उपस्थस्रोत (मूत्रेन्द्रिय) और एक अपानस्रोत (मलद्वार) (24) / पुण्य-सूत्र ___ २५–णवविधे पुण्णे, पण्णत्ते, तं जहा--अण्णपुण्णे, पाणपुण्णे, वस्थपुण्णे, लेणपुण्णे, सयणपुग्णे, मणपुण्णे, बइपुण्णे, कायपुण्णे, णमोक्कारपुण्णे / नौ प्रकार का पुण्य कहा गया है / जैसे 1. अन्न पुण्य, 2. पान पुण्य, 3. वस्त्र पुण्य, 4. लयन-(भवन)-पुण्य, 5. शयन पुण्य, 6. मन पुण्य 7. वचन पुण्य, 8. काय पुण्य, 6. नमस्कार पुण्य (25) / पापायतन-सूत्र २६—णव पावस्सायतणा पण्णता, तं जहा-पाणातिवाते, मुसावाए, (अदिण्णादाणे, मेहुणे), परिग्गहे, कोहे, माणे, माया, लोभे। पाप के आयतन (स्थान) नौ कहे गये हैं। जैसे-- 1. प्राणातिपात, 2. मृषावाद, 3. अदत्तादान, 4. मैथुन, 5. परिग्रह, 6. क्रोध, 7. मान, 8 माया, 6. लोभ (26) / पापश्रुतप्रसंग-सूत्र २७–णवविधे पावसुयपसंगे पण्णत्ते, तं जहासंग्रहणी-गाथा उप्पाते णिमित्त मंते, आइक्खिए तिगिच्छिए / कला प्रावरणे:अण्णाणे मिच्छापवयणे ति य // 1 // पाप श्रु त प्रसंग (पाप के कारणभूत शास्त्र का विस्तार) नौ प्रकार का कहा गया है / जैसे१. उत्पातश्रुत–प्रकृति-विप्लव और राष्ट्र-विप्लव का सूचक शास्त्र / 2. निमित्तश्र त-भूत, वर्तमान और भविष्य के फल का प्रतिपादक शास्त्र / 3. मन्त्रश्रु त-मन्त्र-विद्या का प्रतिपादक शास्त्र / 4. आख्यायिकाश्रत-परोक्ष बातों की प्रतिपादक मातंगविद्या का शास्त्र / 5. चिकित्साश्रुत--रोग-निवारक औषधियों का प्रतिपादक आयुर्वेद शास्त्र / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org