________________ नवम स्थान] [667 सव्वा प्राभरणविही, पुरिसाणं जा य होई महिलाणं / प्रासाण य हत्थीण य, पिंगलगणिहिम्मि सा भणिया // 4 // रयणाइं सव्वरयणे, चोद्दस पवराई चक्कवट्टिस्स। उप्पज्जति एगिदियाइं पंचिदियाहं च // 5 // वस्थाण य उत्पत्ती, णिप्फत्ती चेव सबभत्तीणं / रंगाण य धोयाण य, सव्वा एसा महापउमे / / 6 / / काले कालण्णाणं, भव्य पुराणं च तीसु वासेसु / सिप्पसतं कम्माणि य, तिणि पयाए हियकराई॥७॥ लोहस्स य उत्पत्ती, होइ महाकाले आगराणं च / रुप्पस्स सुवण्णस्स य, मणि-मोत्ति-सिल-प्पवालाणं // 8 // जोधाण य उप्पत्ती, प्रावरणाणं च पहरणाणं च / सम्वा य जुद्धनीती, माणवए दंडणीती य // 6 गट्टविही गाडगविही, कव्वस्स चउम्विहस्स उप्पत्ती। संखे महाणिहिम्मी, तुडियंगाणं च सव्वेसि // 10 // चक्कट्ठपइट्टाणा, अठ्ठस्सेहा य णव य विक्खंभे / बारसदोहा मंजूस-संठिया जह णवीए मुहे // 11 // वेरुलियमणि-कवाडा, कणगमया विविध-रयण-पडिपुण्णा। ससि-सूर-चक्क-लक्खण-अणुसम-जुग-बाहु-वयणा य // 12 // पलिप्रोवमद्वितीया, णिहिसरिणामा य तेसु खलु देवा / जेसि ते प्रावासा, अक्किज्जा प्राहिवच्चा वा // 13 // एए ते णवणिहिणो, पभूतधणरयणसंचयसमिद्धा / जे वसमुवगच्छंती, सवेसि चक्कवट्टीणं // 14 // एक-एक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा की नौ-नौ निधियाँ कही गई हैं / जैसे-- संग्रहणी-गाथा-१. नैसर्पनिधि, 2. पाण्डुकनिधि, 3. पिंगलनिधि, 4. सर्वरत्ननिधि, . 5. महापद्यनिधि, 6. कालनिधि, 7. महाकालनिधि, 8. माणवकनिधि, 6. शंखनिधि // 1 // 1. ग्राम, प्राकर, नगर, पट्टन, द्रोणमुख, मडंब, स्कन्धावार और गृहों की नैसर्पनिधि से प्राप्ति होती है // 2 // 2. गणित तथा बीजों के मान-उन्मान का प्रमाण तथा धान्य और बीजों की उत्पत्ति पाण्डुक महानिधि से होती है // 3 // 3. स्त्री, पुरुष, घोड़े और हाथियों के समस्त वस्त्र-आभूषण की विधि पिंगलकनिधि में कही गई है / / 4 // 4. चक्रवर्ती के सात एकेन्द्रिय रत्न और सात पंचेन्द्रिय रत्न, ये सब चौदह श्रेष्ठरत्न सर्वरत्ननिधि से उत्पन्न होते हैं / / 5 / / 5. रंगे हुए या श्वेत सभी प्रकार के वस्त्रों की उत्पत्ति और निष्पत्ति महापद्म निधि से होती है // 6 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org