________________ 666] [स्थानाङ्गसूत्र संग्रहणी-गाथा पयावती य बंभे रोहे सोमे सिवेति य / महसीहे अग्गिसोहे, दसरहे णवमे य वसुदेवे // 1 // इत्तो पाढतं जधा समवाये जिरवसेसं जाव एगा से गम्भवसही, सिज्झिहिति प्रागमेसेणं / / जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष में इसी अवसर्पिणी में बलदेवों के नौ और वासुदेवों के नौ पिता हुए हैं / जैसे 1. प्रजापति, 2. ब्रह्म, 3. रौद्र, 4. सोम, 5. शिव, 6. महासिंह, 7. अग्निसिंह, 8. दशरथ, 6. वसुदेव / यहाँ से आगे शेष सब वक्तव्य समवायांग के समान है यावत् वह आगामी काल में एक गर्भवास करके सिद्ध होगा (16) / २०~-जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे प्रागमेसाए उस्सप्पिणीए णव बलदेव-वासुदेवपितरो भविस्संति, णव बलदेव-वासुदेवमायरो भविस्संति / एवं जधा समवाए णिरवसेसं जाव महाभीमसेणे, सुग्गीवे य अपच्छिमे। एए खलु पडिसत्तू, कित्तिपुरिसाण वासुदेवाणं / सम्वे वि चक्कजोही, हम्मेहिती सचक्केहि // 1 // जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भारतवर्ष में आगामी उत्सपिणी में बलदेव और वासुदेव के नौ माता-पिता होंगे। इस प्रकार जैसे समवायांग में वर्णन किया गया है, वैसा सर्व वर्णन महाभीमसेन और सुग्रीव तक जानना चाहिए। वे कोतिपुरुष वासुदेवों के प्रतिशत्रु होंगे / वे सब चक्रयोधी होंगे और वे सब अपने ही चक्रों से वासुदेवों के द्वारा मारे जावेंगे (20) / महानिधि-सूत्र २१–एगमेगे णं महाणिधी णव-णव जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ते / एक-एक महानिधि नौ-नौ योजन विस्तार वाली कही गई है (21) / २२–एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कट्टिस्स णव महाणिहिलो [णो ? ] पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथाएं सप्पे पंडुयए, पिंगलए सव्वरयण महापउमे। काले य महाकाले, माणवग, महाणिही संखे // 1 // सप्पंमि णिवेसा, गामागर-णगर-पट्टणाणं च / दोणमुह-मडंबाणं, खंधाराणं गिहाणं च // 2 / / गणियस्स य बीयाणं, माणुम्माणस्स जं पमाणं च। धण्णस्स य बीयाणं, उप्पत्ती पंडुए भणिया // 3 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org