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________________ नवम स्थान | [665 दर्शनावरणीय कर्म नौ प्रकार का कहा गया है / जैसे१. निदादलकी नींद सोना. जिससे सखपूर्वक जगाया जा सके। 2. निद्रानिद्रा-गहरी नींद सोना, जिससे कठिनता से जगाया जा सके / 3. प्रचला-खड़े या बैठे हुए ऊंघना। 4. प्रचला-प्रचला-चलते-चलते सोना। 5. स्त्या द्ध-दिन में सोचे काम को निद्रावस्था में कराने वाली घोर निद्रा। 6. चक्षुदर्शनावरण-चक्षु के द्वारा होने वाले वस्तु के सामान्य रूप के अवलोकन का प्रावरण ___करने वाला कर्म। 7. अचक्षुदर्शनावरण-चक्षु के सिवाय शेष इन्द्रियों और मन से होने वाले सामान्य अवलोकन ___या प्रतिभास का आवरक कर्म / 8. अवधिदर्शनावरण--इन्द्रिय और मन की सहायता विना मूर्त पदार्थों के सामान्य दर्शन ___का प्रतिबन्धक कर्म / 6. केवलदर्शनावरण-सर्व द्रव्य और पर्यायों के साक्षात् दर्शन का प्रावरक कर्म (14) / ज्योतिष-सूत्र १५–अभिई णं णक्खत्ते सातिरेगे णवमुहत्ते चंदेण सद्धि जोगं जोएति / अभिजित नक्षत्र कुछ अधिक नौ मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग करता है (15) / १६-अभिइमाइया णं णव णवत्ता णं चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, त जहा-अभिई, सवणो घणिट्ठा, (सयभिसया, पुवामद्दवया, उत्तरापोटुवया, रेवई, अस्सिणी), भरणो / अभिजित् आदि नौ नक्षत्र चन्द्रमा के साथ उत्तर दिशा से योग करते हैं / जैसे-- 1. अभिजित्, 2. श्रवण, 3. धनिष्ठा, 4. शतभिषक्, 5. पूर्वभाद्रपद, 6. उत्तरभाद्रपद, 7. रेवती, 8. अश्विनी, 6. भरणी (16) / १७--इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागानो णव जोप्रणसताई उड्ढं प्रबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति / ___ इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमिभाग से नौ सौ योजन ऊपर सब से ऊपर वाला तारा (शनैश्चर) भ्रमण करता है (17) / मत्स्य-सूत्र १८-जंबुद्दीवे णं दीवे णवजोयणिप्रा मच्छा पविसिसु वा पविसंति वा पविसिस्संति वा। जम्बुद्वीप नामक द्वीप में नौ योजन के मत्स्यों ने अतीत काल में प्रवेश किया है, वर्तमान में करते हैं और भविष्य में करेंगे / (लवणसमुद्र से जम्बूद्वीप की नदियों में आ जाते हैं) (18) / बलदेव-वासुदेव-सूत्र १६-जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे . इमोसे प्रोसप्पिणीए णव बलदेव-वासुदेवपियरो हुत्था, त जहा . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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