________________ [स्थानाङ्गसूत्र अवगाहना-सूत्र ११-जवविहा सव्यजीवोगाहणा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइप्रोगाहणा, प्राउकाइप्रोगाहणा, (तेउकाइप्रोगाहणा, वाउकाइनोगाहणा), वणस्सइकाइयोगाहणा, बेइंदियनोगाहणा, तेइंदियओ. गाहणा, चारिदियोगाहणा, पंचिदियोगाहणा। सब जीवों की अवगाहना नौ प्रकार की कही गई है / जैसे-- 1. पृथ्वीकायिक जीवों की अवगाहना, 2. अप्कायिक जीवों की अवगाहना, 3. तेजस्कायिक जीवों की अवगाहना, यिक जीवों की अवगाहना, 5. वनस्पतिकायिक जीवों की अवगाहना, 6. द्वीन्द्रिय जीवों को अवगाहना, 7. त्रीन्द्रिय जीवों की अवगाहना, 8 चतुरिन्द्रिय जीवों की अवगाहना, 6. पंचेन्द्रिय जीवों की अवगाहना (11) / संसार-सूत्र १२-जीवा णं नहिं ठाणेहि संसारं वत्तिसु वा वत्तंति वा वत्तिस्संति वा, तजहापुढविकाइयत्ताए, (प्राउकाइयत्ताए, ते उकाइयत्ताए, वाउकाइयत्ताए, वणस्सइकाइयत्ताए, बेइंदियत्ताए, तेइंदियत्ताए, चरिदियत्ताए), पंचिदियत्ताए / जीवों ने नौ स्थानों से (नौ पर्यायों में) संसार-परिभ्रमण किया है, कर रहे हैं और आगे करेंगे। जैसे 1. पृथ्वीकायिक रूप से, 2. अप्कायिक रूप से, 3. तेजस्कायिक रूप से, 4. वायुकायिक रूप से, 5. वनस्पतिकायिक रूप से, 6. द्वीन्द्रिय रूप से, 7. त्रीन्द्रिय रूप से, 8. चतुरिन्द्रिय रूप से, 6. पंचेन्द्रिय रूप से (12) / रोगोत्पत्ति-सूत्र १३-गवहिं ठाणेहिं रोगुत्पत्ती सिया, त जहा–प्रच्चासणयाए, अहितासणमाए, अतिणिहाए, अतिजागरितेणं, उच्चारणिरोहेणं, पासवणणिरोहेणं, अद्धाणगमणेणं, भोयणपडिकूलताए, इंदियत्थविकोवणयाए। नौ स्थानों-कारणों से रोग की उत्पत्ति होती है / जैसे-- 1. अधिक बैठे रहने से, या अधिक भोजन करने से / 2. अहितकर आसन से बैठने से, या अहितकर भोजन करने से / 2. अधिक नींद लेने से, 4. अधिक जागने से, 5. उच्चार (मल) का निरोध करने से. 6. प्रस्रवण (मूत्र) का वेग रोकने से, 7. अधिक मार्ग-गमन से, 8. भोजन की प्रतिकूलता से, 6. इन्द्रियार्थ-विकोपन अर्थात् काम-विकार से (13) / दर्शनावरणीयकर्म-सूत्र १४----णवविधे दरिसणावरणिज्जे कम्मे पण्णत्ते, त जहा-णिद्दा, णिहानिद्दा, पयला, पयलापयला, थोगिद्धी, चक्खुदंसणावरणे, प्रवक्खुदंसनावरणे, प्रोहिदंसणावरणे, केवलसणावरणे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org