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________________ नवम स्थान गति-आगति-सूत्र -पुढविकाइया गवतिया णवत्रागतिया पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइए पुढविकाइएसु उववज्जमाणे पुढविकाइएहितो वा, (आउकाइएहितो बा, तेउकाइएहितो वा, वाउकाइएहितो था, वणस्सइकाइरहितो वा, बेइंदिरहितो वा, तेइंदिएहितो बा, चरिदिएहितो वा), पंचिदिएहितो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकायत्तं विष्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए बा, (ग्राउकाइयत्ताए वा, तेउकाइयत्ताए वा, वाउकाइयत्ताए वा, वणस्सइकाइयत्ताए वा, बेइंदियत्ताए वा, तेइंदियत्ताए वा, चरिदियत्ताए वा), पंचिदियत्ताए वा गच्छेज्जा। पृथ्वीकायिक जीव नौ गतिक और नौ प्रागतिक कहे गये हैं। जैसे 1. पृथ्वी कायिकों में उत्पन्न होने वाला पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिकों से, या अप्कायिकों से, या तेजस्कायिकों से, या वायुकायिकों से, या वनस्पतिकायिकों से, या द्वीन्द्रियों से, या त्रीन्द्रियों से, या चतुरिन्द्रियों से, या पंचेन्द्रियों से आकर उत्पन्न होता है / वही पृथ्वाकायिक जीव पृथ्वीकायिकपने को छोड़ता हा पृथ्वीकायिक रूप से, या अप्कायिक रूप से, या तेजस्कायिक रूप से, या वायुकायिक रूप से, या वनस्पतिकायिक रूप से, या द्वीन्द्रियरूप से, या त्रीन्द्रियरूप से, या चतुरिन्द्रिय रूप से, या पंचेन्द्रिय रूप से जाता है, अर्थात् उनमें उत्पन्न होता है (8) / --एवमाउकाइयावि जाव पंचिदियत्ति / इसी प्रकार अप्कायिक से लेकर पंचेन्द्रिय तक के सभी जीव नौ गतिक और नौ प्रागतिक जानना चाहिए (6) / जीव-सूत्र १०-~णवविधा सध्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चरिदिया, रइया, पंचेंदियतिरिक्खजोणिया, मणुया, देवा, सिद्धा। अहवा-णवविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा--पढमसमयणेरइया, अपढमसमयणेरइया, (पढमसमयतिरिया, अपढमसमयतिरिया, पढमसमयमणुया, अपढमसमयमणुया, पढमसमयदेवा), अपढमसमयदेवा, सिद्धा। सब जीव नौ प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. एकेन्द्रिय, 2. द्वीन्द्रिय, 3. त्रीन्द्रिय, 4. चतुरिन्द्रिय, 5. नारक, 6. पंचेन्द्रिय, तिर्यग्योनिक, 7. मनुष्य, 8. देव, 6, सिद्ध / अथवा सब जीव नौ प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. प्रथम समयवर्ती नारक, 2. अप्रथम समयवर्ती नारक / 3. प्रथम समयवर्ती तिर्यंच, 4. अप्रथम समयवर्ती तिर्यंच / 5. प्रथम समयवर्ती मनुष्य, 6. अप्रथम समयवर्ती मनुष्य / 7. प्रथम समयवर्ती देव, 8. अप्रथम समयवर्ती देव / 6. सिद्ध (10) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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