________________ [ 653 अष्टम स्थान ] १०६-प्रविधा सव्वजीवा पण्णता, तं जहाणेरइया, तिरिक्खजोणिया, तिरिक्खजोणिणीयो, मणुस्सा, मणुस्सीयो, देवा, देवीप्रो, सिद्धा। अहवा-प्रदुविधा सम्धजीवा पण्णता, तं जहा--प्राभिणिबोहियणाणी, (सुयणाणी, मोहिणाणी, मणपज्जवणाणी), केवलणाणी, मतिअण्णाणी, सुतअण्णाणी, विभंगणाणी। सर्वजीव आठ प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. नारक, 2. तिर्यग्योनिक, 3. तिर्यग्योनिकी, 4. मनुष्य, 5. मानुषी, 6. देव, 7. देवी, 8. सिद्ध। अथवा सर्वजीव आठ प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. प्राभिनिबोधिकज्ञानी, 2. श्रु तज्ञानी, 3. अवधिज्ञानी, 4. मनःपर्यवज्ञानी, 5. केवलज्ञानी 6. मत्यज्ञानी, 7. श्रु ताज्ञानी, 8. विभंगज्ञानी (106) / संयम-सूत्र १०७-अविधे संजमे पण्णत्ते, तं जहा-पढमसमयसुहमसंपरायसरागसंजमे, अपढमसमयसुहमसंपरायसरागसंजमे, पढमसमयबादरसंपरायसरागसंजमे, अपढमसमयबादरसंपरायसरागसंजमे, पढमसमयउवसंतकसायवीतरागसंजमे, अपढसमयउवसंतकसायवीतरागसंजमे, पढमसमयखीणकसायवीतरागसंजमे, अपढमसमयखीणकसायवीतरागसंजमे / संयम आठ प्रकार का कहा गया है / जैसे१. प्रथमसमय सूक्ष्मसाम्परायसराग संयम, 2. अप्रथमसमय सूक्ष्मसाम्परायसराग संयम, 3. प्रथमसमय बादरसम्परायसराग संयम, 4. अप्रथमसमय बादरसाम्परायसराग संयम, 5. प्रथम समय उपशान्तकषाय वीतराग संयम, 6. अप्रथम समय उपशान्तकषाय वीतराग संयम, 7. प्रथम समय क्षीणकषाय वीतराग संयम, 8. अप्रथम समय क्षीणकषाय वीतराग संयम (107) / पृथिवी-सूत्र 105-- अट्ट पुढवीनो पण्णताश्रो, तं जहा--रयणप्पभा, (सक्करप्पभा, वालुअप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पभा, तमा), अहेसत्तमा, ईसिपन्भारा। पृथिवियां पाठ कही गई हैं / जैसे१. रत्नप्रभा, 2. शर्कराप्रभा, 3. वालुकाप्रभा, 4. पंक प्रभा 5. धूम प्रभा, 6. तमःप्रभा, 7. अधः सप्तमी (तमस्तमः प्रभा), 8. ईषत्प्राग्भारा (108) / १०६-ईसिपम्माराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभागे अट्ठजोयणिए खेते अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्त / ईषत्प्राग्भारा पृथिवी के बहुमध्य देशभाग में आठ योजन लम्बे-चौड़े क्षेत्र का बाहल्य (मोटाई) आठ योजन है (106) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org