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________________ 652] [ स्थानाङ्गसूत्र __ तिर्यग्-मिश्रोपन्नक (तियंच और मनुष्य दोनों के उत्पन्न होने के योग्य) कल्प आठ कहे गये हैं। जैसे 1. सौधर्म, 2. ईशान, 3. सनत्कुमार, 4. माहेन्द्र, 5. ब्रह्मलोक, 6. लान्तक, 7. महाशुक्र, 8. सहस्रार (101) / १०२–एतेसु णं पसु कप्पेसु अट्ट इंदा पण्णत्ता, तं जहा-सक्के, (ईसाणे, सणंकुमारे, माहिदे, बंभे, लंतए, महासुक्के), सहस्सारे / इन पाठों कल्पों में आठ इन्द्र कहे गये हैं / जैसे१. शक्र, 2. ईशान, 3. सनत्कुमार, 4. माहेन्द्र, 5. ब्रह्म, 6. लान्तक, 7. महाशुक्र. 8. सहस्रार (102) / १०३-एतेसि णं अट्टण्हं इंदाणं अट्ठ परियाणिया विमाणा पण्णता, तं जहा-पालए, पुष्फए, सोमणसे, सिरिवच्छे, णंदियावत्ते, कामकमे, पीतिमणे, मणोरमे। इन आठों इन्द्रों के आठ पारियानिक (यात्रा में काम आने वाले) विमान कहे गये हैं / जैसे-- 1. पालक, 2. पुष्पक, 3. सौमनस, 4. श्रीवत्स, 5. नंद्यावर्त, 6. कामक्रम, 7. प्रीतिमन, 8. मनोरम (103) / प्रतिमा-सूत्र १०४--अट्ठमिया णं भिक्खुपडिमा चउसट्ठीए राइदिएहिं दोहि य अट्ठासीतेहि भिक्खासतेहि अहासुत्तं (प्रहाप्रत्थं प्रहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं कारणं फासिया पालिया सोहिया तोरिया किट्टिया) अणुपालितावि भवति / अष्टाष्टमिका भिक्षुप्रतिमा 64 दिन-रात, तथा 288 भिक्षादत्तियों के द्वारा यथासूत्र, यथाअर्थ, यथातत्त्व, यथामार्ग, यथाकल्प, तथा सम्यक् प्रकार काया से स्पृष्ट, पालित, शोधित, तोरित और अनुपालित की जाती है / जोव-सूत्र १०५-अटुविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णता, तं जहा-पढमसमयणेरइया, अपढमसमयरइया, (पढमसमयतिरिया, अपढमसमयतिरिया, पढमसमयमणुया, अपढमसमयमणुया, पढमसमयदेवा), अपढमसमयदेवा / संसार-समापन्नक जीव आठ प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. प्रथम समय नारक-नरकायु के उदय के प्रथम समय वाले नारक / 2. अप्रथम समय नारक-प्रथम समय के सिवाय शेष समय वाले नारक / 3. प्रथम समय तिर्यंच-तिर्यगायु के उदय के प्रथम समय वाले तिर्यंच / 4. अप्रथम समय तिर्यंच-प्रथम समय के सिवाय शेष समय वाले तिर्यंच / 5. प्रथम समय मनुष्य-मनुष्यायु के उदय के प्रथम समय वाले मनुष्य / 6. अप्रथम समय मनुष्य-प्रथम समय के सिवाय शेष समय वाले मनुष्य / 7. प्रथम समय देव-देवायु के उदय के प्रथम समय वाले देव / 8. अप्रथम समय देव-प्रथम समय के सिवाय शेष समय वाले देव (105) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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