________________ [651 अष्टम स्थान ] ९८-जंबद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रुप्रगवरे पव्वते अट्ठ कूडा पण्णत्ता तं जहा रयण-रयणुच्चए या, सम्वरयण रयणसंचए चेव / विजये य वेजयंते, जयंते अपराजिते // 1 // तत्थ णं अट्ठ दिसाकुमारिमहत्तरियानो महिड्डियानो जाव पलिपोवमद्वितीयाओ परिवसंति, तं जहा अलंबसा मिस्सकेसी, पोंडरिगी य वारुणी / आसा सव्वगा चेव, सिरो हिरी चेव उत्तरतो // 2 // जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में रुचकवर पर्वत के ऊपर आठ कूट कहे गये हैं। जैसे - 1. रत्न कूट, 2. रत्नोच्चय कूट, 3. सर्वरत्न कूट, 4. रत्नसंचय कूट, 5. विजय कूट, 6. वैजयन्त कूट 7, जयन्त कूट, 8. अपराजित कूट (68) / वहां महाऋद्धिवाली यावत् एक पल्योपम को स्थिति वाली पाठ दिशाकुमारी महतरिकाएं रहती हैं / जैसे 1. अलंबुषा, 2. मिश्रकेशी, 3. पौण्डरिकी, 4. वारुणी 5. आशा, 6. सर्वगा, 7. श्री, 8. ह्री। महत्तरिका-सूत्र E--अट्ठ आहेलोगवत्यव्वाप्रो दिसाकुमारिमहत्तरियानो पण्णतामो, तं जहासंग्रहणी-गाथा भोगंकरा भोगवती, सुभोगा भोगमालिणी। सुवच्छा वच्छमित्ता य, वारिसेणा बलाहगा // 1 // अधोलोक में रहने वाली आठ दिशाकुमारियों की महत्तरिकाएं कही गई हैं / जैसे१. भोगंकरा, 2. भोगवती, 3. सुभोगा, 4. भोगमालिनी, 5. सुवत्सा, 6. वत्समित्रा, 7. वारिषेणा, 8. बलाहका (66) / १००--अट्ट उड्ढलोगवस्थव्वापो दिसाकुमारिमहत्तरियायो पण्णतायो, तं जहा मेघंकरा मेघवती, सुमेधा मेघमालिणी। तोयधारा विचित्ता य, पुष्फमाला अणिदिता / / 1 / / ऊर्ध्वलोक में रहने वाली पाठ दिशाकुमारी-महत्तरिकाएं कही गई हैं / जैसे-- 1. मेघंकरा, 2. मेघवती, 3. सुमेघा, 4. मेघमालिनी, 5. तोयधारा, 6. विचित्रा, 7. पुष्पमाला, 8. अनिन्दिता (100) / कल्प-सूत्र * १०१--अट्ट कप्पा तिरिय-मिस्सोववण्णगा पण्णता, तं जहा-सोहम्मे, (ईसाणे, सणंकुमारे, माहिदे, बंभलोगे, लंतए, महासुक्के), सहस्सारे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org