________________ 648 ] [ स्थानाङ्गसूत्र धातकीषण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में धातकोवृक्ष पाठ योजन ऊंचा, बहुमध्यदेश भाग में पाठ योजन चौड़ा और सर्व परिमाण में कुछ अधिक आठ योजन विस्तृत कहा गया है (86) / ८७–एवं धायइरुक्खायो आढवेत्ता सच्चेव जंबूदीववत्तव्वता भाणियन्वा जाव मंदरचूलियत्ति। इसी प्रकार धातकीषण्ड के पूर्वार्ध में धातकी वृक्ष से लेकर मन्दरचूलिका तक का सर्व वर्णन जम्बदीप की वक्तव्यता के समान जानना चाहिए (87) / / ८८-एवं पच्चत्थिमद्ध वि महाधातइरुक्खातो पाढवेता जाव मंदरचूलियत्ति / ___ इसी प्रकार धातकीषण्ड के पश्चिमार्ध में महाधातकी वृक्ष से लेकर मन्दरचूलिका तक का सर्व वर्णन जम्बू द्वीप की वक्तव्यता के समान है (88) / पुष्करवर-द्वीप-सूत्र ८६-एवं पुक्खरवरदीवड्ढपुरस्थिमद्धेवि पउमरुक्खायो प्राढवेत्ता जाव मंदरचूलियत्ति / इसी प्रकार पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध में पद्मवृक्ष से लेकर मन्दरचूलिका तक का सर्व वर्णन जम्बूद्वीप की वक्तव्यता के समान है (86) / ६०-एवं पुक्खरवरदीवड्ढपच्चत्थिमद्धेवि महापउमरुक्खातो जाव मंदरचूलियत्ति / इसी प्रकार पुष्करवरद्वीपार्ध के पश्चिमाई में महापद्म वृक्ष से लेकर मन्दरचूलिका तक का सर्व वर्णन जम्बूद्वीप की वक्तव्यता के समान है (60) / कूट-सूत्र ६१-जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पन्वते भद्दसालवणे अट्ट दिसाहत्थिकडा पण्णता, तं जहासंग्रहणी-गाथा पउमुत्तर णोलवते, सुहत्थि अंजणागिरी। कुमुदे य पलासे य, वडेंसे रोयणागिरी // 1 // जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दरपर्वत के भद्रशाल वन में आठ दिशाहस्तिकूट (पूर्व आदि दिशाओं में हाथी के समान आकार वाले शिखर) कहे गये हैं / जैसे 1. पद्मोत्तर, 2. नीलवान्, 3. सुहस्ती, 4. अंजनगिरि, 5. कुमुद, 6. पलाश, 7. अवतंसक, 8. रोचनगिरि (61) / जगती-सूत्र ९२-जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स जगती अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता। जम्बूद्वीप नामक द्वीप को जगती पाठ योजन ऊंची और बहुमध्यदेश भाग में पाठ योजन विस्तृत कही गई है (62) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org