________________ अष्टम स्थान ] [647 इसी प्रकार पाठ अर्हत् पाठ चक्रवर्ती, आठ बलदेव और आठ वासुदेव उत्पन्न हुए थे, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे (80) / ८१-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमे णं सीताए महाणईए उत्तरे णं अट्ठ दोहवेयडा, अट्ठ तिमिसगुहाओ, अट्ठ खंडगप्पवातगुहायो, अट्ठ कयमालगा देवा, अट्ठ गट्टमालगा देवा, अट्ठ गंगाकुडा, अट्ठ सिंधुकुडा, अट्ठ गंगाप्रो, अट्ट सिंधूप्रो, अट्ट उसभकूडा पब्वता, अट्ठ उसभकूडा देवा पण्णत्ता / जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व में, शीता महानदी के उत्तर में आठ दीर्घ वैताढ्य, आठ तमिस्र गुफाएं, पाठ खण्डप्रपात गुफाएं, आठ कृतमालक देव, आठ गंगाकुण्ड, आठ सिन्धुकुण्ड, आठ गंगा, पाठ सिन्धु, पाठ ऋषभकूट पर्वत और पाठ ऋषभकूट-देव हैं / ८२---जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीताए महाणदीए दाहिणे णं अट्ट दोहवेअड्डा एवं चेव जाव अट्ठ उसभकूडा देवा पण्णत्ता, णवरमेत्थ रत्त-रत्तावती, तासिं चेव कुडा। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व में शीता महानदी के दक्षिण में पाठ दीर्घ वैताढ्य, आठ तमिस्र गुफाएं, आठ खण्डकप्रपात गुफाएं, आठ कृतमालक देव, आठ रक्ताकुण्ड, पाठ रक्तवती कुण्ड, पाठ रक्ता, आठ रक्तवती, पाठ ऋषभकूट पर्वत और आठ ऋषभकूटदेव हैं (82) / ८३---जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सोतोयाए महाणदीए दाहिणे णं अट्र दोहवेयड्डा जाव प्रट्ठ गट्टमालगा देवा, अट्ठ गंगाकुडा, अट्ठ सिंधुकुडा, अट्ठ गंगाओ, अढ सिंधयो, प्रद उसभकूडा पव्वता, अट्ठ उसभकूडा देवा पणत्ता / जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पश्चिम में शीतोदा महानदी के दक्षिण में पाठ दीर्घ वैताढ्य, पाठ तमिस्रगुफाएं, आठ खण्डकप्रपात गुफाएं, आठ कृतमालक देव, आठ नृत्यमालक देव, आठ गंगाकुण्ड, आठ सिन्धुकुण्ड, आठ गंगा, पाठ सिन्धु, आठ ऋषभकूट पर्वत और पाठ ऋषभकूट-देव हैं (83) / ८४-जंबुट्टीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सोप्रोयाए महाणदीए उत्तरे णं अट्र दोहवेयड्डा जाव अट्ट पट्टमालगा देवा पण्णत्ता। अट्ठ रत्ताकुडा, अट्ट रत्तावतिकुडा, अट्ट रत्तायो, (अट्ट रत्तावतीओ, अट्ट उसमकूडा पन्वता), अट्ट उसभकूडा देवा पण्णत्ता। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दरपर्वत के पश्चिम में शीतोदा महानदी के उत्तर में पाठ दीर्घ वैताढ्य, आठ तमित्रगुफाएं, पाठ खण्डकप्रपात गुफाएं, आठ कृतमालक देव, आठ नृत्यमालक देव, पाठ रक्ताकुण्ड, आठ रक्तवतीकुण्ड, आठ रक्ता, आठ रक्तवती, आठ ऋषभकूट पर्वत और पाठ ऋषभकूट देव हैं (83) / ८५--मंदरचलिया णं बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोइणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता। मन्दर पर्वत की चूलिका बहुमध्यदेश भाग में पाठ योजन चौड़ी है (85) / धातकीषण्डद्वीप-सूत्र ८६-धायइसंडदीवपुरथिमद्ध णं धायहरुक्खे अट्ठ जोयणाई उड्डे उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ट जोयणाई विक्खंभेणं, साइरेगाइं अट्ट जोयणाई सम्वग्गेणं पण्णत्ते / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org