________________ अष्टम स्थान ] [ 643 द्वीप-समुद्र-सूत्र ५६-गंगा-सिंधु-रत्त-रत्तवतिदेवीणं दीवा अट-अटु जोयणाई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता। गंगा, सिन्धु, रक्ता और रक्तवती नदियों की अधिष्ठात्री देवियों के द्वीप पाठ-आठ योजन लम्बे-चौड़े कहे गये हैं (56) / ५७–उक्कामुह-मेहमुह-विज्जुमुह-विज्जुदंतदीवा णं दीवा अट्ट-अट्ठ जोयणसयाई प्रायामविक्खंभेणं पण्णत्ता। उल्कामुख, मेघमुख, विद्य न्मुख और विद्यु दन्त द्वीप आठ-आठ सौ योजन लम्बे-चौड़े कहे गये हैं (57) / ५८---कालोदे णं समुद्दे अट्ठ जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते / कालोद समुद्र चक्रवाल विष्कम्भ (गोलाई की अपेक्षा) से आठ लाख योजन विस्तृत कहा गया है (58) / ५६-अभंतरपुक्खरद्ध णं अट्ठ जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते / आभ्यन्तर पुष्कराध चक्रवाल विष्कम्भ से आठ लाख योजन विस्तृत कहा गया है (56) / ६०–एवं बाहिरपुक्खरद्धवि। इसी प्रकार बाह्य पुष्कराध भी चक्रवाल विष्कम्भ से आठ लाख योजन विस्तृत कहा गया है काकणिरत्न-सूत्र ६१--एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अट्ठसोवण्णिए काकणिरयणे छत्तले दुवालसंसिए अट्ठकपिणए प्रधिकरणिसंठिते / प्रत्येक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा के पाठ सुवर्ण जितना भारी काकिणी रत्न होता है / वह छह तल, बारह कोण, आठ कणिका वाला और अहरन के संस्थान वाला होता है (61) / विवरण-'सुवर्ण' प्राचीन काल का सोने का सिक्का है, जो उस समय 80 गुजा-प्रमाण होता था / काकिणी रत्न का प्रमाण चक्रवर्ती के अंगुल से चार अंगुल होता है। मागध-योजन-सूत्र ६२–मागधस्स णं जोयणस्स अट्ठ धणुसहस्साई णिधत्ते पण्णते। __मगध देश के योजन का प्रमाण पाठ हजार धनुष कहा गया है (62) / जम्बूद्वीप-सूत्र ६३–जंबू णं सुदंसणा अट्ट जोयणाई उड्ड उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अदु जोयणाई विक्खंभेणं, सातिरेगाई अट्ट जोयणाई सव्वम्गेणं पण्णत्ता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org