________________ 642] [ स्थानाङ्गसूत्र महापद्म-सूत्र ५२-अरहा णं महापउमे अट्ट रायाणो मुंडा भवित्ता अगाराश्रो अणगारितं पवावेस्सति, त जहा-पउमं, पउमगुम्म, गलिणं, गलिणगुम्मं, पउमद्धयं, धणुद्धयं, कणगरह, भरहं। (भावी प्रथम तीर्थकर) अर्हत् महापद्म आठ राजाओं को मुण्डित कर अगार से अनगारिता में प्रवजित करेंगे / जैसे 1. पद्म 2. पद्मगुल्म, 3. नलिन, 4. नलिन गुल्म. 5. पद्मध्वज 6. धनुर्ध्वज, 7. कनकरथ 8. भरत (52) / कृष्ण-अनमहिषी-सूत्र ५३---कण्हस्स णं वासुदेवस्स अट्ट अग्गम हिसीनो अरहतो णं अस्ट्रिमिस्स अंतिए मडा भवेत्ता अगाराम्रो अणगारितं पव्वइया सिद्धाप्रो (बुद्धाश्रो मुत्ताप्रो अंतगडाप्रो परिणिन्वुडामो) सव्वदुक्खप्पहीणाओ, त जहासंग्रहणी-गाथा पउमावती य गोरी, गंधारी लक्खणा सुसीमा य / जंबवती सच्चभामा, रुप्पिणी प्रगमहिसोप्रो // 1 // वासुदेव कृष्ण की पाठ अनमहिषियाँ अर्हत् अरिष्टनेमि के पास मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रवजित होकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत्त और समस्त दुःखों से रहित हुई। जैसे 1. पद्मावती 2. गोरी 3. गान्धारी, 4. लक्ष्मणा. 5. सुषीमा, 6. जाम्बवती 7. सत्यभामा, 8. रुक्मिणी (53) / पूर्ववस्तु-सूत्र ५४-वीरियपुवस्स णं अट्ठ वत्थू अट्ठ चूलवस्थू पण्णत्ता। वीर्यप्रवाद पूर्व के आठ वस्तु (मूल अध्ययन) और पाठ चूलिका-वस्तु कहे गये हैं (54) / गति-सूत्र ५५-अट्ठ गलीग्रो पण्णत्तानो, तं जहा-णिरयगती, तिरियगती, (मणुयगती, देवगती), सिद्धिगती, गुरुगती, पणोल्लणगती, पन्भारगती। गतियाँ आठ कही गई हैं / जैसे१. नरकगति. 2. तिर्यग्गति 3. मनुष्यगति. 4. देवगति, 5. सिद्धगति, 6. गुरुगति 7. प्रणोदनगति, 8. प्राग्-भारगति (55) / विवेचन-परमाणु आदि की स्वाभाविक गति को गुरुगति कहा जाता है / दूसरे की प्रेरणा से जो गति होती है वह प्रणोदन गति कहलाती है। जो दूसरे द्रव्यों से आक्रान्त होने पर गति होती है, उसे प्रागभारगति कहते हैं। जैसे—नाव में भरे भार से उसकी नीचे की ओर होने वाली गति / शेष गतियाँ प्रसिद्ध हैं। www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only