________________ अष्टम स्थान ] [ 641 इन पाठों कृष्णराजियां के आठ नाम कहे गये हैं। जैसे१. कृष्णराजि, 2. मेघराजि, 3. मघा, 4. माघवती. 5. वातपरिघ. 6. वातपरिक्षोभ, 7. देवपरिघ 8. देव परिक्षोभ (44) / विवेचन-इन आठों कृष्णराजियों के चित्रों को अन्यत्र देखिये / ४५--एतासि णं प्रडण्हं कण्हराईणं अदृसु अोवासंतरेसु अट्ठ लोगतियविमाणा पण्णता, त जहा-अच्चो, अच्चोमाली, वइरोपणे, पभंकरे, चंदाभे, सूराभे, सुपइट्ठाभे अम्गिच्चामे' / इन पाठों कृष्णराजियों के आठ अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक देवों के विमान कहे गये हैं / जैसे 1. अचि, 2. अचिमाली, 3. वैरोचन, 4. प्रभंकर 5. चन्द्राभ 6. सूर्याभ, 7. सुप्रतिष्ठाभ. 8. अग्न्यर्चाभ (45) / ४६-एतेसु णं अनुसु लोगतिविमाणेसु अटुविधा लोगंतिया देवा पण्णत्ता, त जहासंग्रहणी-गाथा सारस्सतमाइच्चा, वण्ही वरुणा य गद्दतोया य / तुसिता अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव बोद्धब्बा // 1 // इन आठों लोकान्तिक विमानों में आठ प्रकार के लोकान्तिक देव कहे गये हैं / जैसे१. सारस्वत, 2. आदित्य, 3. वह्नि. 4. वरुण, 5. गर्दतोय, 3. तुषित 7. अव्याबाध 8. अग्न्यर्च (46) / ४७-एतेसि णं अढण्हं लोगंतियदेवाणं अजहण्णमणुक्कोसेणं अट्ठ सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। इन पाठों लोकान्तिक देवों को जघन्य और उत्कृष्ट भेद से रहित---एक-सी स्थिति पाठ-पाठ सागरोपम की कही गई है। मध्यप्रदेश-सूत्र ४८-अट्ठ धम्मत्थिकाय-मज्झपएसा पण्णत्ता / धर्मास्तिकाय के पाठ मध्य प्रदेश (रुचक प्रदेश) कहे गये हैं (48) / ४६-अट्ठ अधम्मस्थिकाय-(मज्झपएसा पण्णता)। अधर्मास्तिकाय के आठ मध्य प्रदेश कहे गये हैं (46) / ५०-अट्ठ पागासस्थिकाय-(मज्झपएसा पण्णत्ता)। अाकाशास्तिकाय के आठ मध्य प्रदेश कहे गये हैं (50) / ५१-~-अट्ठ जीव-मज्झपएसा पण्णत्ता। जीव के आठ मध्य प्रदेश कहे गये हैं (51) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org