________________ अष्टम स्थान ] [ 636 1. आदित्ययश, 2. महायश, 3. अतिबल, 4. महाबल, 5. तेजोवीर्य, 6. कार्तवीर्य, 7. दण्डवीर्य, 8. जलवीर्य (36) / पार्श्वगण-सूत्र ३७–पासस्स णं अरहयो पुरिसादाणियस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा होत्था, त जहा-सुमे, अज्जघोसे, वसि?', बंभचारी, सोमे, सिरिधरे, वीरमद्दे, जसोभद्दे / पुरुषादानीय (लोक-प्रिय) अर्हन् पार्श्वनाथ के आठ गण और पाठ गणधर हुए / जैसे१. शुभ, 2. आर्यघोष, 3. वशिष्ठ, 4. ब्रह्मचारी, 5. सोम, 6. श्रीधर, 7. वीरभद्र, यशोभद्र (37) / दर्शन-सूत्र ३८–अढविधे दंसणे पण्णत्ते, त जहा-सम्मदंसणे, मिच्छदसणे, सम्मामिच्छदंसणे, चक्खुदसणे, (प्रचक्खुदंसणे, प्रोहिदसणे), केवलदसणे, सुविणदंसणे / दर्शन आठ प्रकार का कहा गया है। जैसे१. सम्यग्दर्शन, 2. मिथ्यादर्शन, 3. सम्यग्मिथ्यादर्शन, 4. चक्षुदर्शन, 5. अचक्षुदर्शन, 6. अवधिदर्शन, 7 केवलदर्शन, 8. स्वप्नदर्शन (38) / औपमिक-काल-सूत्र ___३६-अढविधे अद्धोवमिए पण्णत्ते, तं जहा–पलिग्रोवमे, सागरोवमे, प्रोसप्पिणी, उस्सप्पिणी, पोग्गलपरियट्ट, तीतद्धा, प्रणागतद्धा, सव्वद्धा। औपमिक अद्धा (काल) आठ प्रकार का कहा गया है / जैसे१. पल्योपम, 2. सागरोपम, 3. अवपिणी, 4. उत्सर्पिणी, 5. पुद्गल परिवर्त, 6. अतीत अद्धा, 7. अनागत-अद्धा, 8. सर्व-अद्धा (36) / अरिष्टनेमि-सूत्र ४०-अरहतो णं अरि?णेमिस्स जाव अट्ठमातो पुरिसजुगातो जुगंतकरभूमी। दुवासपरियाए अंतमकासी। अर्हत् अरिष्टनेमि से पाठवें पुरुषयुग तक युगान्तकर भूमि रही-मोक्ष जाने का क्रम चालू रहा, आगे नहीं। अर्हत् अरिष्टनेमि के केवलज्ञान प्राप्त करने के दो वर्ष बाद ही उनके शिष्य मोक्ष जाने लगे थे (40) / महावीर-सूत्र ४१-समणेणं मगवता महावीरेणं अट्ट रायाणो मुंडे भवेत्ता अगाराप्रो अणगारितं पव्वाइया, तं जहासंग्रहणी-गाहा वीरंगए वीरजसे, संजय एणिज्जए य रायरिसी। सेये सिवे उद्दायणे, तह संखे कासिवद्धणे // 1 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org