________________ 638] [ स्थानाङ्गसूत्र 7. स्पर्शनेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से, 8. स्पर्शनेन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से (33) / ३४–चरिदिया णं जीवा समारभमाणस्स अट्ठविधे प्रसंजमे कज्जति, तं जहा-चक्खुमातो सोक्खातो क्वरोवेत्ता भवति। चक्खुमएणं दुक्खेणं संजोंगेत्ता भवति / (घाणामातो सोक्खायो ववरोवेत्ता भवति / घाणामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति / जिब्भामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति, जिब्मामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति)। फासामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति / फासामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता मवति / चतुरिन्द्रिय जीवों का घात करने वाले के आठ प्रकार का असंयम होता है / जैसे१. चक्षुरिन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग करने से, 2. चक्षुरिन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से, 3. घ्राणेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग करने से, 4. घ्राणेन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से, 5. रसनेन्द्रिय-सम्बन्धी सख का वियोग करने से, 6. रसनेन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से, 7 स्पर्शनेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग करने से, 8. स्पर्शनेन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग करने से (34) / सूक्ष्म-सूत्र _____३५-अट्ठ सुहुमा पण्णता, त जहा-पाणसुहुमे, पणगसुहुमे, बीयसुहुमे, हरितसुहुमे, पुप्फसुहुमे, अंउसुहुमे, लेणसुहुमे, सिणेहसुहमें / सूक्ष्म जीव आठ प्रकार के कहे गये हैं। जैसे ----- 1. प्राणसूक्ष्म-अनुधरी, कुन्थु आदि प्राणी, 2. पनक सूक्ष्म-उल्ली आदि, 3. बोजसूक्ष्म-धान आदि के बीज के मुख-मूल की कणी आदि जिसे तुष-मुख कहते हैं। 4. हरितसूक्ष्म-एकदम नवीन उत्पन्न हरित काय जो पृथ्वी के समान वर्ण वाला होता है। 5. पुष्पसूक्ष्म-बट-पीपल आदि के सूक्ष्म पुष्प / 6. अण्डसूक्ष्म-मक्षिका, पिपीलिकादि के सूक्ष्म अण्डे / 7. लयनसूक्ष्म-कीड़ीनगरा आदि। 8. स्नेहसूक्ष्म-प्रोस, हिम आदि जलकाय के सूक्ष्म जीव (35) / भरतचक्रवति-सूत्र ३६-भरहस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कट्टिस्स अट्ठ पुरिसजुगाई अणुबद्ध सिद्धाइं (बुद्धाई मुत्ताइं अंतगडाइं परिणिन्वुडाई) सव्वदुक्खप्पहीणाई, तं जहा-आदिच्चजसे, महाजसे, अतिबले, महाबले, तेयवीरिए कत्तवीरिए दंडवोरिए, जलवीरिए। चातुरन्त चक्रवर्ती राजा भरत के आठ उत्तराधिकारी पुरुष-युग राजा लगातार सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिवृत्त और समस्त दुःखों से रहित हुए / जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org