SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 705
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टम स्थान ] [637 देवेन्द्र देवराज ईशान के आठ अग्नमहिषियां कही गई हैं। जैसे१. कृष्णा, 2. कृष्णराजी, 6. रामा, 4. रामरक्षिता, 5. वसु, 6. वसुगुप्ता 7. वसुमित्रा, 8. वसुन्धरा (28) / २६--सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो अढग्गहिसीनो पण्णत्ताप्रो / देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज सोम के पाठ अग्रमहिषियां कही गई हैं (26) / ३०-ईसाणस्स गं देविदस्स देवरण्णो वेसमणस्स महारण्णो अग्गमहिसीनो पण्णत्तानो। देवेन्द्र, देवराज ईशान के लोकपाल महाराज वैश्रमण के आठ अग्रमहिषियां कही गई हैं (30) / महाग्रह-सूत्र ३१–अट्ठ महग्गहा पण्णता, तं जहा--चंदे, सूरे, सुक्के, बुहे, बहस्सती, अंगारे, सणिवरे, केऊ। आठ महाग्रह कहे गये हैं / जैसे 1. चन्द्र, 2. सूर्य, 3. शुक्र, 4. बुध, 5. बृहस्पति, 6. अंगार, 7. शनैश्चर, 8. केतु (31) / तृणवनस्पति-सूत्र ३२–अढविधा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा--मूले, कंदे, खंधे, तया, साले, पवाले, पत्ते, पुप्फे। तण वनस्पतिकायिक आठ प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. मूल, 2. कन्द, 3. स्कन्द, 4. त्वचा, 5. शाखा, 6. प्रवाल (कोंपल) 7. पत्र, 8. पुष्प संयम-असंयम-सूत्र ३३-चरिदिया णं जीवा असमारभमाणस्स अविधे संजमे कज्जति, त जहा-चक्खुमातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति / चक्खुभएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति / (घाणामातो सोक्खातो प्रववरोवेत्ता भवति / घाणामएणं दुक्खेणं असंजोएता भवति / जिम्मामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति / जिम्भामएणं दुक्खेणं असंजोएता भवति)। फासामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति / फासामएणं दुक्खेणं प्रसंजोगेत्ता भवति / चतुरिन्द्रिय जीवों का घात नहीं करने वाले के आठ प्रकार का संयम होता है / जैसे१. चक्षुरिन्द्रिय सम्बन्धी सुखका वियोग नहीं करने से, 2. चक्षुरिन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से, 3. घ्राणेन्द्रिय सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से, 4. घ्राणेन्द्रिय सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से, 5. रसनेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने से, 6. रसनेन्द्रिय-सम्बन्धी दुःख का संयोग नहीं करने से, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy