________________ अष्टम स्थान ] [635 वचनविभक्ति-सूत्र २४–प्रदुविधा वयणविभती पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथाएं णिद्देसे पढमा होती, बितिया उवएसणे / ततिया करणम्मि कता, चउत्थी संपदावणे // 1 // पंचमी य प्रवादाणे, छट्ठी सस्सामिवादणे / सत्तमो सणिहाणत्थे, अट्ठमी प्रामंतणी भवे // 2 // तत्थ पढमा विभत्ती, णिसे---सो इमो अहं वत्ति / बितिया उण उवएसे-भण 'कुण व' इमं व तं वत्ति // 3 // ततिया करणम्मि कया-णीतं व कतं व तेण व मए व / हंदि णमो साहाए, हवति चउत्थी पदाणमि // 4 // अवणे गिण्हसु तत्तों, इत्तोत्ति वा पंचमी अवादाणे। छट्टी तस्स इमस्स व, गतस्स वा सामि-संबंधे // 5 // हवइ पुण सत्तमी तमिमम्मि पाहारकालभावे य / प्रामंतणो भवे अट्ठमी उ जह हे जुवाण! त्ति // 6 / / वचन-विभक्तियाँ आठ प्रकार की कही गई हैं / जैसे१. निर्देश (नमोच्चारण) में प्रथमा विभक्ति होती है / 2. उपदेश क्रिया से व्याप्त कर्म के प्रतिपादन में द्वितीया विभक्ति होती है। 3. क्रिया के प्रति साधकतम कारण के प्रतिपादन में तृतीया विभक्ति होती है। 4. सत्कार-पूर्वक दिये जाने वाले पात्र को देने, नमस्कार आदि करने के अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है। 5. पृथक्ता, पतनादि अपादान बताने के अर्थ में पंचमी विभक्ति होती है। 6. स्वामित्त्व-प्रतिपादन करने के अर्थ में षष्ठी विभक्ति होती है। 7. सन्निधान या प्राधार बताने के अर्थ में सप्तमी विभक्ति होती है। 8. किसी को सम्बोधन करने या पुकारने के अर्थ में अष्टमी विभक्ति होती है / 1. प्रथमा विभक्ति का चिह्न-वह, यह, मैं, आप, तुम आदि / 2. द्वितीया विभक्ति का चिह्न-को, इसको कहो, उसे करो, आदि / 3. तृतीया विभक्ति का चिह्न-से, द्वारा, जैसे-गाड़ी से या गाड़ी के द्वारा आया, मेरे द्वारा किया गया, आदि। 4. चतुर्थी विभक्ति का चिह्न-लिए-जैसे गुरु के लिए नमस्कार, आदि / 5. पंचमी विभक्ति का चिह्न-जैसे—धर ले जाओ, यहां से ले जा आदि / 6. षष्ठी विभक्ति का चिह्न—यह उसकी पुस्तक है, वह इसकी है, आदि / 7. सप्तमी विभक्ति का चिह्न-जैसे उस चौकी पर पुस्तक, इस पर दोपक आदि / 8. अष्टमी विभक्ति का चिह्न-हे युवक, हे भगवान्, आदि (24) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org