________________ 634 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 3. पाचोचना और प्रतिक्रमण दोनों के योग्य, 4. विवेक के योग्य, 5. व्युत्सर्ग के योग्य, 6. तप के योग्य, 7. छेद के योग्य, 8. मूल के योग्य (20) / मदस्थान-सूत्र २१-अट्ठ मयट्ठाणा पण्णता, तं जहा - जातिमए, कुलमए, बलमए, रूबमए, तवमए, सुतमए, लाभमए, इस्सरियमए। मद के स्थान पाठ कहे गये हैं / जैसे१. जातिमद, 2. कुलमद, 3. बलमद, 4. रूपमद, 5. तपोमद, 6. श्रु तमद, 7. लाभमद, 8. ऐश्वर्यमद (21) / अक्रियावादि-सूत्र २२-प्रट्ठ अकिरियावाई पण्णत्ता, तं जहा–एगावाई, अणेगावाई, मितवाई, णिम्मितवाई, सायवाई, समुच्छेदवाई, णितावाई, ण संतिपरलोगवाई / अक्रियावादी आठ प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. एकवादी—एक ही तत्त्व को स्वीकार करने वाले / 2. अनेकवादी-एकत्व को सर्वथा अस्वीकार कर अनेक तत्त्वों को ही मानने वाले / 3. मितवादी-जीवों को परिमित मानने वाले / 4. निमितवादी-ईश्वर को सृष्टि का निर्माता माननेवाले / 5. सातवादी-सुख से ही सुख की प्राप्ति मानने वाले / 6. समुच्छेदवादी-क्षणिक वादी, वस्तु को सर्वथा क्षण विनश्वर मानने वाले / 7. नित्यवादी, वस्तु को सर्वथा नित्य मानने वाले / 8. अ-शान्ति-परलोकवादी-मोक्ष एवं परलोक को नहीं मानने वाले (22) / महानिमित्त-सूत्र २३–अढविहे महाणिमित्ते पण्णत्ते, तं जहा--भोमे, उप्पाते, सुविणे, अंतलिक्खे, अंगे, सरे, लक्खणे, वंजणे। पाठ प्रकार के शुभाशुभ-सूचक महानिमित्त कहे गये हैं / जैसे१. भौम-भूमि की स्निग्धता-रूक्षता भूकम्प आदि से शुभाशुभ जानना / 2. उत्पात-उल्कापात रुधिर-वर्षा आदि से शुभाशुभ जानना / 3. स्वप्न-स्वप्नों के द्वारा भावी शुभाशुभ जानना / 4. आन्तरिक्ष-आकाश में विविध वर्णों के देखने से शुभाशुभ जानना / 5. आङ्ग-शरीर के अंगों को देखकर शुभाशुभ जानना / 6. स्वर-स्वर को सुनकर शुभाशुभ जानना। 7. लक्षण- स्त्री पुरुषों के शरीर-गत चक्र आदि लक्षणों को देखकर शुभाशुभ जानना। 8, व्यञ्जन-तिल, मसा आदि देखकर शुभाशुभ जानना (23) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org