________________ 632 ] [ स्थानाङ्गसूत्र स्पर्श आठ प्रकार का कहा गया है / जैसे 1. कर्कश, 2. मृदु, 3. गुरु, 4. लघु, 5. शीत, 6. उष्ण, 7. स्निग्ध, 8. रूक्ष (13) / लोकस्थिति-सूत्र १४–अढविधा लोगद्विती पण्णता, तं जहा-पागासपतिट्टिते बाते, वातपतिट्टिते उदही, (उदधिपतिट्टिता पुढवी. पुढविपतिद्विता तसा थावरा पाणा, अजीवा जीवपतिद्विता) जीवा कम्मपतिद्विता, अजीवा जीवसंगहीता, जीवा कम्मसंगहीता। लोक स्थिति आठ प्रकार की कही गई है / जैसे१. वायु (तनुवात) अाकाश पर प्रतिष्ठित है / 2. समुद्र (घनोदधि) वायु पर प्रतिष्ठित है / 3. पृथ्वी समुद्र पर प्रतिष्ठित है।। 4. स-स्थावर प्राणी पृथ्वी पर प्रतिष्ठित हैं / 5. अजीव जीव पर प्रतिष्ठित हैं / 6. जीव कर्म पर प्रतिष्ठित हैं। 7. अजीव जीव के द्वारा संग्रहीत है। 8. जीव कर्म के द्वारा संगृहीत है (14) / गणिसंपदा-सूत्र १५–अढविहा गणिसंपया पण्णत्ता, तं जहा–आचारसंपया, सुयसंपया, सरीरसंफ्या, वयणसंफ्या, वायणासंपया, मतिसंपया, परोगसंपया, संगहपरिण्णा णाम अट्ठमा। गणी (प्राचार्य) की सम्पदा आठ प्रकार की कही गई है। जैसे१. प्राचार-सम्पदा संयम की समृद्धि, 2. श्रु त-सम्पदा-श्रु तज्ञान की समृद्धि, 3. शरीर-सम्पदा-प्रभावक शरीर-सौन्दर्य, 4. वचन-सम्पदा-वचन-कुशलता, 5. वाचना-सम्पदा-अध्यापन-निपुणता, 6. मति-सम्पदा–बुद्धि की कुशलता, 7. प्रयोग-सम्पदा-बाद-प्रवीणता, 8. संग्रह-परिज्ञा–संघ-व्यवस्था की निपुणता (15) / महानिधि-सूत्र 16 एगमेगे णं महाणिही अट्टचक्कवालपतिट्ठाणे अट्ठजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते / चक्रवर्ती की प्रत्येक महानिधि पाठ-आठ पहियों पर आधारित है और पाठ-पाठ योजन ऊंची कही गई है (16) / समिति-सूत्र १७–अढ समितीनो पण्णत्ताओ, तं जहा~-इरियासमिती, भासासमिती, एसणासमिती, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org